Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 145
________________ योगी दिवाकरनन्दि - नं. १३९ के शिलालेख में योगी दिवाकरनन्दि तथा उनके शिष्यों का वर्णन है। एक गन्ती नामक भद्र महिला ने उनसे दीक्षा लेकर समाधिमरण किया था।' एक सौ आठ वर्ष तप करने वाले दिगम्बर मुनि - नं. १५९ शिलालेख प्रकट करता है कि कालन्तर के एक मनिराज ने कटवा पर्वत पर एक सौ आठ वर्ष तक तप करके समाधिमरण किया था। गर्ज़ यह कि श्रवणबेलगोल के प्रायः सब ही शिलालेख दिगम्बर मुनियों को कीर्ति और यशः को प्रकट करते हैं। राजा और रंक सब हो का उन्होंने उपकार किया था। रणक्षेत्र में पहुंचकर उन्होंने वीरों को सन्मार्ग सुझाया था। राजा रानी, स्त्री-पुरुष सब ही उनके भक्त थे। दक्षिण भारत के अन्य शिलालेखों में दिगम्बर मुनि - श्रवणबेलगोल के अतिरिक्त दक्षिणभारत के अन्य स्थानों से भी अनेक शिलालेख मिले हैं, जिनसे दिगम्बर मुनियों का गौरव प्रकट होता है। उनमें से कुछ का संग्रह प्रो. शेषगिरिराव ने प्रकट किया है जिससे विदित होता है कि दिगम्बर मुनि इन शिलालेखों में यम-नियम-स्वाध्याय-ध्यान धारण-मौनानुष्ठान-जप-समाधि-शीलगुण-सम्पत्र लिखे गये हैं। उनका यह विशेषण उन्हें एक सिद्धको कन्ट करता है। प्रो. आ. उनके विषय में लिखते हैं कि - "From these epigraphs we learn some details about the great asectics and acharyas who spread the gospel of Jainism in the Andhra-Karoala desa. They were not only the Icader of lay and ascetic disciples but of royal dynasties of warrior clans that held the destinics of the peoples of these lands in their hands. *** भावार्थ - “ उक्त शिलालेख संग्रह से उन महान दिगम्बर मुनियों और आचार्यों का परिचय मिलता है जिन्होंने आन्ध्र कर्णाट देश में जैन धर्म का संदेश विस्तृत किया था। ये पात्र श्रावक और साधु शिष्यों के ही नेता नहीं थे बल्कि उन क्षत्रिय कलों के राजवंशों के भी नेता थे जिनके हाथों में उन देश की प्रजा के भाग्य को बागडोरथी।" १.bid. p. 289. २. bid. p. 308. . ३. SSU. PL]] p.6. ४. bid. p. 68. (142) दिगम्बात्त्व और दिगम्बर मुनि

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