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[२२] तमिल साहित्य में दिगम्बर मुनि
"Among the systems controverled in the Manimekbalai, the Jain system also ligures as one and the words Samanas and Amana are of frequent occurrance; as also refrences to their Vibaras, So that from the earliest times reachable with our present mcans, Jainism apparently flourished in the Tamil Country."
तमिल साहित्य के मुख्य और प्राचीन लेखक दिगम्बर जैन विद्वान् रहे हैं और उसका सर्वप्राचीन व्याकरण-ग्रंथ "तोल्काप्पियम्" (Tolkappiyam) एक जैनाचार्य को ही रचना है। किन्तु हम यहाँ पर तमिल साहित्य के जैनों द्वारा रचे हुये अंग को नहीं छुयेंगे। हमें तो जैनेतर तमिल साहित्य में दिगम्बर मुनियों के वर्णन को प्रकट करना इन है।
अच्छा तो, तमिल साहित्य का सर्वप्राचीन समय "संगम-काल" अर्थात् ईस्वी पूर्व दूसरी शाताब्दि से ईस्वी पाँचवीं शताब्दि तक का समय है। इस काल की रचनाओं में बौद्ध विद्वान् द्वारा रचित काव्य "पणिमेखलै" प्रसिद्ध है। “माणिमेखलै' में दिगम्बर मनियों और उनके सिद्धान्तों तथा मठों का अच्छा खासा वर्णन है। जैन दर्शन को इस काव्य में दो भागों में विभक्त किया गया है- (१) आजीविक और (२) निग्रंथा आजीविक भगवान महावीर के समय में एक स्वतंत्र संप्रदाय था; किन्तु उपरान्त काल में वह दिगम्बर जैन संप्रदाय में समाविष्ट हो गया था। निग्रंथ प्रदाय को 'अरुहन' (अर्हत) का अनुयायी लिखा है, जो जैनों का द्योतक है। इस के पात्रों में सेठ कोवलन की पत्नी कण्णकि के पिता मानाइकन के विषय में लिखा है कि “जब उसने अपने दामाद के मारे जाने के समाचार सुने तो उसे अत्यन्त दुःख और खेद हुआ और वह जैन संघ में नंगा मुनि हो गया। इस काव्य से यह भी प्रकट है कि चोल और पाण्ड्य राजाओं ने जैन धर्म को अपनाया था। ___“मणिमेखलै" के वर्णन से प्रकट है कि "निग्रंथगण ग्रामों के बाहर शीतल मठों में रहते थे। इन पठों की दीवारें बहुत उँची और लाल रंग से रंगी हुई होती थी। प्रत्येक मठ के साथ एक छोटा सा बगीचा भी होता था। उनके मंदिर तिराहों और चौराहों पर
१. Se.. p. 32 भावार्थ-तमिल काव्य 'मणिमेखले में जैन संप्रदाय और शब्द -"अमण" तथा उनके विहारों का उल्लेख विशेष है। जिससे तमिल देश में अतीव प्राचीनकाल से जैन धर्म का अस्तित्व सिद्ध है।"
२. SSIJ, pt.I..p. 89 ३. BS.p. 15. ४. llid.p.681.
५. SSD.pl.l.p.47 दिगम्बाय और दिगम्बर मुनि
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