Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 123
________________ अवस्थित थे। जैनों ने अपने प्लेटफार्म भी बना रखे थे, जिन पर से निग्रंथाचार्य अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते थे। जैन साधुओं के मठों के साथ-साथ जैन साध्वियों के आराम भी होते थे। जेन साध्वियों का प्रभाव तमिल महिला समाज पर विशेष था। कावेरीप्पूमपट्टिनम जो चोल राजाओं की राजधानी थी, वहाँ और कावेरी तट पर स्थित उदैपुर में जैनों के पठ थे। मदरा जैन धर्म का मुख्य केन्द्र था। सेठ कोवलन और उनकी पत्नि कण्णकि जब मथुरा को जा रहे थे तो रास्ते में एक जैन आर्यिका ने उन्हें किसी जीव को पीड़ा न पहुंचाने के लिये सावधान किया था, क्योंकि मदरा में निर्गों द्वारा यह एक महान् पाप करार दिया गया था। यह निग्रंथगण तीन छत्रयुक्त और अशोक वृक्ष के तले बैठाये गये। ये अर्हत भगवान की दैदीप्यमान मूर्ति की विनय करते थे। यह सब जन दिगम्बर थे, यह उक्त काव्य के वजन से स्पष्ट है। पुहर में जब इन्द्रोत्सव मनाया गया तब वहाँ के राजा ने सब धर्मों के आचार्यों को वाद और धर्मोपदेश करने के लिये बुलाया था। दिगम्बर मुनि इस अवसर पर बड़ी संख्या में पहुंचे थे और उनके धर्मपदेश से अनेकानेक तमिल स्त्री-पुरुष जैन धर्म में दीक्षित हुये थे। __ "मणिमेखले" काव्य में उसकी मुख्य पात्री मणिमेखला एक निग्रंथ साधु से जैन धर्म के सिद्धान्तों के विषय में जिज्ञासा करती भी बताई गई है। तथा इस काव्य के अन्य वर्णन से स्पष्ट है कि ईस्वी की प्रारम्भिक शताब्दियों में तमिल देश में दिगम्बर मुनियों की एक बड़ी संख्या मौजूद थी और तमिल लोग देश में विशेष मान्य तथा प्रभावशाली थे। शैव और वैष्णव सम्प्रदायों के तमिल साहित्य में भी दिगम्बर मुनियों का वर्णन मिलता है। शैवों के 'पेरियपुषणम्' नामक ग्रंथ में पूर्ति नायनार के वर्णन में लिखा है कि कलभ्रबंश के क्षत्री जैसे ही दक्षिण भारत में पहुंचे वैसे ही उन्होंने दिगम्बर जैन धर्म को अपना लिया। उस समय दिगम्बर जैनों की संख्या वहाँ अत्यधिक थी और उनके आचार्यों का प्रभाव कलों पर विशेष था। इस कारण शैव धर्म उन्नत नहीं हो पाया था। किन्त कलों के बाद शैव धर्म को उन्नति करने का अवसर मिला था। उस समय बौद्ध प्रायः निष्प्रभ हो गये थे, किन्तु जैन अब भी प्रधानता लिये हये थे। 3. Ibrid.pp 47–48 "That these lains were the Digambaras is clearly seen from their description ..... The Jains took cvery advantaye of the opportunity and large was the number of those that embrace this Taith." 3. Manimekalai asked the Nirgrantha lo state who was his God what he was laught in his sacred books etc. ३. Tbid.p55. "I would appear from a general study of the litrature of the period that Buddhism had dcsclined as an active religion bul Jainism had still its stroughold. The chier opponents of these saints were the Samans or the Jains. -BS.p.689 (120) दिवरत्व और दिगम्बर मुनि

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