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अर्थात्-"और भी पाँच कारण से वस्त्र रहित साधु वस्त्र सहित साध्वी साथ रहकर जिनाज्ञा का उल्लंघन करते हैं।
बौद्ध शास्त्रों में भी जैन मुनियों का उल्लेख 'अचेलक रूप में हुआ मिलता है। जैसे "पाटिकयुत्त अवेलो"- अचेलक पाटिक पुत्र, यह जैन साधु थे। चीनी त्रिपिटक में भी जैन साधु "अचेलक' नाम से उल्लिखित हुए हैं।' बौद्ध टीकाकार बुद्धघोष 'अचेलक से भाव नग्न केलेते हैं।"
४.अतिथि- ज्ञानादि सिद्धर्थ तनुस्थित्यर्थान्नाय यः स्वयम्, यत्नेनातति मेह वा न तिथिर्यस्य सोऽतिथिः।
-सामार धर्मामृत, अ.५, श्लो. ४२ जिनके उपवास, व्रत आदि करने को गृहस्थ श्रावक के समान अष्टमी आदि कोई खास तिथि (तारीख) नियत न हो, जब चाहे करें।
५.अनगार-आगाररहित, गृहत्यागी दिगम्बर मुनि।
इस शब्द का प्रयोग अणयारमहरिसीणं-मूलाचार, अनगार भावनाधिकार, श्लो. २ में, अनगार महर्षिणां इसकी श्लोक की संस्कृत छाया और न विद्यतेऽगारं गृहं स्त्रयादिकं येषांतेऽनगार” इसी श्लोक की संस्कृत टीका में मिलता है।
श्वेताम्बरीय आचारांग सूत्र में हैं "तं वोसज्ज वत्थ-मणगारे। ६.अपरिग्रही- तिलत्षपात्र परिग्रह रहित दिगम्बर मुनि।
७.अह्नीक- लज्जाहीन, नंगे मुनि। इस शब्द का प्रयोग अजैन ग्रंथकारों ने दिगम्बर मुनियों के लिए घृणा प्रकट करते हुए किया है, जैसे बौद्धों के 'दाठावंश में है -
__ 'इमे अहिरिका सब्बे सद्धादिगुणवज्जिता।
श्रद्धा सटाच दुपञ्चा सम्ममोक्ख विबन्धका।।८८।।' बौद्ध नैयायिक कमलशील ने भी जैनों का 'अह्रीक' नाम से उल्लेख किया है (अह्नीकादयश्चोदयन्ति, स्याद्वाद परीक्षा प्र. 'तत्वसंग्रह', पृ. ४८६)। वाचस्पति
अभिधानकोष में भी 'अह्रीक' को दिगम्बर मुनि कहा गया है-"अह्रीक क्षपणके तस्य दिगम्बरत्वेन लज्जाहीनत्वात् तधात्वम्।" 'हेतुबिन्दुतर्कटीका' में भी जैन मुनि के धर्म का उल्लेख 'क्षपणक' और 'अह्रीक' नाम से हुआ है तथा श्वेताम्बराचार्य श्री वादिदेवसरि ने भी अपने 'स्याद्वाद-रत्नाकर' ग्रंथ में दिगम्बर जैनों का उल्लेख अह्रीक नाम से किया है। (स्याद्वादरत्नाकर, पृ. २३०)
१, ठाणा., पृ५६१। २. भमयु., पृ १०, २५५। ३. "वीर", वर्ष ४, ५. ३५३। ४, अचेलकोऽतिनिच्चेलो नग्गो।'IO.III. p.245 । ५.बृजेश॰, पृ.४। ६. आचा, पृ. २१०। ७. दाठा., पृ१४।
८. पुरातत्व वर्ष ५, अंक ४, पृ. २६६,२६७। दिगम्बरत्य और दिगम्बर मुनि