Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 76
________________ बिन्दसार ने जैनियों के लिये क्या किया? यह ज्ञात नहीं है, किन्तु जब उसका पिता जैन था, तो उस पर जैन प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है। उस पर उसका पुत्र आशोक अपने प्रारम्भिक जीवन में जैन धर्मपरायण रहा था, बल्कि अन्त समय तक उसने जैन सिद्वान्दों का प्रचार किया, यह अमिट दिया जा सका है। इस दिशा में बिन्दुसार का जैन धर्म प्रेमी होना उचित है। अशोक ने अपने एक स्तम्भ में स्पष्टतः निथ साधुओं की रक्षा का आदेश निकाला था।' सम्राट् सम्प्रति पूर्णतः जैन धर्मपरायण थे। उन्होंने जैन मुनियों के विहार और धर्म प्रचार की व्यवस्था न केवल भारत में ही की, बल्कि विदेशों में भी उनका विहार कराकर जैन धर्म का प्रचार करा दिया। उस समय में दशपूर्व के धारक विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय आदि दिगम्बर जैनाचार्यों के संरक्षण में रहा जैन संघ खूब फला-फुला था। जिस साम्राज्य के अधिष्ठाता ही स्वयं जब दिगम्बर मुनि होकर धर्म प्रचार करने के लिये तुल गये तो भला कहिये जैन धर्म को विशेष उन्नति और दिगम्बर मुनियों को बाहुल्यता उस राज्य में क्यों न होती। मौर्यों का नाम जैन साहित्य में इसीलिए स्वर्णाक्षरों में अंकित | [१३] सिकन्दर महान् एवं दिगम्बर मुनि ... Onesikritos says that he himself was sent to converse with these sages. For Alexander heard that these men (Sramans) went about reaked, १. Narsinhachar's Sravanahelayolap-25-40. विको., भाग ७, ए. १५६-१५७ तथा जैशिसं. भूमिका, पृ. ५४-७० 3. "We niay conclude that Bindusara folkwed the faith (Jainism) of this of his father (Chandragupta) and that, in the same bclicf. whatever it may prove to have been, his childhood's lessons were first learnt by Ashoka. -F.Thomas, JRAS., IX., 181 ३. हमारा "सम्राट अशोक और जैन धर्म" नामक ट्रैक्ट देखो। ४. स्तम्भ लेख नं. ७ "That sounder of the Mauraya dynasty, Chandragupta, as well as bis Brahnsin Minister, Chanadya. were also inclined towards Mahavira's darines and cver Ashoka is said to have been luid towards Buddhism by a previous study of Jain tcaching." -E.B..Havell, IIARI.D.59. ५. कुणालसूनुस्त्रिखण्डभरताधिपः परमार्हतो अनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तित श्रमणविहारः सम्प्रति महाराजोंसौंभवत् -पाटलीपुत्र कल्पग्रन्थ, EHI.,pp. A12-203. दिगम्बात्व और दिगम्बर मुनि (73)

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