Book Title: Dhatuparayanam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Shahibag Girdharnagar Jain S M Sangh

Previous | Next

Page 436
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् शब्दसूचिः अक्षि 1,570 उ. / 4,29 उ | अग्र 1,1022 उ.. अक्षित 1,570 अग्रणी 1,884 अंश 1,391 उ. / 9,351 अगस् 1,139 उ. अङ्क 1,610 अंस 1,391 उ. अगाध 1,743 अङ्कति 1,105 उ. अंहति 2,42 उ. अगार 5,21 (उ.) अङ्कना 1,610 अंहस् 1,858 उ. अग्नि 1,1022 उ. अङ्गुर 1,610 उ. अहितृ 1,858, अग्निचित् 4,5 अङ्कर 1,610 उ. अंहि 1,858 उ. अग्निचित्या 4,5 : अक्तु 6,16 उ. . अग्निमिन्ध 6,26 अक्ष 4,29 उ. अग्निष्टुत् 2,66 अङ्गमेजय 1,148,659 अक्षघु 3,1 अग्निष्टोम 9,331 अङ्गार 1,83 उ. अक्षन् 1,570 उ. अग्निष्टोमयाजिन् 1,991 अङ्गुरि 1,83 उ.. अक्षर १,५७०उ.९७१।४,२९उ | अग्नीध् 6,26 . | अङ्गुलि 1,83 उ. 1 अत्र सूचौ प्रथममडूं गणसूचकं ततः परं धातुसूचकम् / ये शब्दा एकाधिकधातुषु आयान्ति तेषां अङ्कानि यथाक्रमम् दर्शितानि / यथा अक्षर 1,570,971 / अयमर्थ:-अक्षरशब्दः 570 तमे 971 तमे च प्रथमगणधातौ उपलभ्यते / / ये शब्दा गणान्तरेषु अपि आयान्ति तेणं निर्देशार्थ दण्ड: / ' निर्दिष्टः, यथा अंश १.३९१.उ.। 9.351 अत्रायमर्थ:-अंशशब्दः प्रथमगणे 391 तमे नवमगणे च 351 तमे धातौ उपलभ्यते / - ये शब्दा उणादिसूत्रेण साधिता उणादिसूत्रविवरणे च साक्षात् लब्धाः तत्र 'उ.' इति निर्देशः कृतः / ये तु उणादिसूत्रेण साधिता अपि विवरणे न लब्धाः तत्र '[उ.] इति निर्देशः कृतः / ये शब्दा उणादिसूत्रेण न साधिताः किन्तु उणादि प्रत्ययेनाऽपि ये सिद्धिाः भवन्ति ते (उ.) इति संज्ञया निर्दिष्टा। ये पुनः शब्दा एकस्मिन्नेव धातु-विवरणे एकाधिकवारं साधिताः तत्र 'च' इति * निर्देशः कृतोऽस्ति //

Loading...

Page Navigation
1 ... 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532