Book Title: Dhatuparayanam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Shahibag Girdharnagar Jain S M Sangh
________________ 494 ] शुद्धि पत्रकम् पति पृष्ठ पति 18 226 *220 227 शुद्धम् घिनणर्थ शमितुम् क्त्वि नोऽप्रशानो ङ्याम् क्त्वि 220 , शुद्धम् . मांङ्क तिजियुजेर्ग 375 क्यबपवादे वेदत्वात् अथ दान्ता 227 220 227 228 220 220 * 220 वेदत्वात् यडि . 221 यित्व यां 229 221 अम् 20 कसिपदि शकधृष सहयुध्वा / . राजयुध्या . रुधादित्वात् अनुरुन्छे 229 20 221 221 229 222 229 20 . 19 9 221 222 222 क्त्वि पक्षे क्वि क्याम् हस्वत्वे क्त्वि वैचित्त्ये / वैचित्यम औदित्वात् घत्वे परेदैवि 222 स्तम्भे लदित्त्वात् लिशिंच्व H शेके, शशाक शकलम् રરર " 235 10 W 223 aW 9 236 w *237 क्त्वो अभ्यषुणोत् सुयजो ड्वनिप् सिरा।" कृसिकमि 223 223 स्नुग्धः नाम्युपान्त्यगृ घनि 15 23 239 224 224 20 21 दिदीषते बहिरङ्त्वाद स्था० ब्रींच् शीर्षके 24 240 1 240 3 *240 16 2417 MC धुवका ऋदन्तात्रयो गवर्जाऽनि आस्तर्यते क्यपि के दीर्धं च हीकः
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