Book Title: Dhatuparayanam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Shahibag Girdharnagar Jain S M Sangh
________________ যুক্তি বন্ধ पृष्ठ पति 177 177 शुद्धम् | पृष्ठ पति उणादिविवरणे * *1926 કારક शासस् तिया शवा 194 "भावकर्मणोः" 3 / 4 / 68 *194 सप्तम्याम् / 194 19 शुद्धम् अलि हेतुकर्तृतो जेहीयते ऋदन्तोऽयं ऋल्वादेः प्रवृत्त्य 0 - 1 - V0 0 क्ते कित्त्वे 22 . दध्नो औः 177 177 178 178 178 *179 179 उपसर्गादातः हिः, 18 *198 23 198 वधेय॑णि 5 / 3 / 94 यजादिवश वीरणीमूलम् प्रादुरु उपान्त्योत्वे डिनिर्दे डितनिर्दे यद् गणेन 12 180 21 P 201 . 202 युक्त ऋदित्वात् “ऋ ऋदित्वात् कित्त्वाभावादत्र ऋतष्टित् ऋतष्टित राधनोति समृखनि केचित्तु 202 वि 205 206 ' 182 182 . 6 14 211 182 14 तर्षः टित्वपक्षे ऊर्धादिभ्यः ऊध्वंशयः एञ्चा प्राणिप्रसवे क्तयोर्नेट 183 217 217 20 218 __mm 185 रोषणशीलः डब्याम् क्त्वि "ईगितः" 3395 क्त्वि युजिशुन्धि क्त्वि वपि मदैचपर्यन्तं 188 / 219 6 . क्षुभ्नादीनाम् ब्रुवोः अधिक्षावहि 26 युक्त 191 / 219 25
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