Book Title: Dhatuparayanam
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Shahibag Girdharnagar Jain S M Sangh
________________ अष्टमं परिशिष्टम् उद्धृतगद्य-पद्यानां सूचिरत्र प्रदर्श्यते / गण 10 धा. 415 / , गण 9 धा. 24 आरेकंसंशयेऽप्याहुः। ईक्षितव्यं परस्त्रीभ्यः / उदयति हि स... उदयति विततोवं... (शिशुपाल० 4 / 20) उन्नामिताखिल... एकं द्वादशधा जज्ञे / एकवचनमुत्सर्गः.... एतन्मन्द विपक्व.... ( काव्यप्रकाश 7 / 142) कमलवनोदघाटनं... (शारङ्ग पद्धति १३८)(सूर्यशतक ग्लो० 2) कलां नार्घन्ति... .. ( महाभारत सभापर्व 38 / 36 ) कश्चित्तमनुवर्तते / (सि. हे. बृ. वृ. 3 / 3 / 1) कायमानः सिद्धोनादि... (काव्यालङ्कार 5 / 2 / 83) गौरिवाकृतनीशारः... (महाभाष्य 3 / 3 / 21, बृ. वृ. 5 / 3 / 20) प्राममद्य प्रवेक्ष्यामि... (पा. 6 / 1 / 152 काशिकाटीका) जजान गर्भ मघवा। (तुलना अथर्व० 3 / 10 / 12) जायते अस्ति... (निरुक्त 1 / 29 ) जिह्वाशतान्यु... जुघुषुः पुष्यमाणवाः / ( महाभाष्य 7 / 2 / 23, उ.वि.२० ) तडित्खचयतीवाशाः / ततो वावृत्यमाना सा। . ( भट्टीकाव्य 4 / 28 ) तां प्रातिप्रदि...( वाक्यपदीय 3134 ) सावत्खरः प्रखर मुल्ललयां चकार / (शिशुपाल० 5 / 7) तुडत्यंहः... ( कविरहस्य प्रलो० 32) दरदलितहरिद्रा... (विद्धशालभञ्जिका 3 / 17) धातोरान्तरे वृत्ते... (वाक्यपदीय 3 / 7 / 88) धात्वर्थः केवलः शुद्धो... 157 ... 24 358 .14 228 गण 1 धा. 1 Ge
Page Navigation
1 ... 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532