Book Title: Dharm Sangrahani Part 02 Author(s): Ajitshekharsuri Publisher: Adinath Jain Shwetambar Jain Mandir TrustPage 17
________________ चोरो वंझापुत्तो छ छउमत्थसामिगत्ता छउमत्थस्सवि छन्नड़गामको ज जं अविचलिय सहावे जं एत्थ णिव्विसेसं जं कुचियानुयोगो जं केवलाई सादी जं गझगाहगो जं गाहनपरिणामो जं च इयमातधम्मो जं चरणं पढम. जं चैव खलु जं जह भणियं जं दंसण णाणाइ जं पुण अभिसंधीओ जं पुण तिकाल जं पुण नासे जंपति य वियरागो जं मोणं तं सम्मं जं सव्वणाणमो सामिकालकारण जं सामण्णपहाणं जं होअतक्कियं जड़ एवं धणनासे जड़ ताव एव जड़ णाम जीवधम्मा जड़ नाम हासभावो देहस्स पीडा जड़ सव्वनुकओ जच्चिय विवाग जतिवि य तीए जति वि ण विणस्सति जति वि स कुत्थियन्णू जमणादिकम्म जमवग्गा दि जमिह छउमत्थधम्मा जम्मजरामरणादी जम्माभावे ण जरा जम्हा रागभावो जम्हा पच्चक्खेण जम्हा स धिरो जम्हा पच्यक्खेवेण जम्हा पहा वि दव्वं जलहिजलपल जस्सेरिसा दसाओ जह उ किर णालिगाए जह कस्सवि सयराहं ६७० 59 जह केवलम्मि गाथाङ्क पृष्ठ जह किर खीणावरणे ८४४ 139 जह चेव कुट्ठो 240 जह चेव अप्पच्चक्खो १११५ १००६ 199 गाथाङ्क ८३७ 135 १३६४ 338 ११६९ 259 329 १३३८ ६७६ 61 ७३५ 89 १३३० 325 जायणसंमुच्छणमो ११२३ 242 ७१० 75 ८०२ 117 १३६० 337 ७८६ 108 ८२४ 128 १००३ 198 १२९१ 308 ८१४ 121 १२३२ 287 ८५२ 142 १३६८ 339 ७८५ 108 ९५१ 180 ५५० 2 १९६३ 257 ११६५ 257 १०४९ 216 ११५८ 255 ५८४ 19 ९८५ 192 १०२८ 208 १२७५ 302 ५५३ 3 ८२३ 126 ८४५ 140 ११७२ 260 १३८२ 344 १९४४ 250 ११५२ 253. ११७८ 262 १२३५ 288 १३३४ 327 १२२२ 283 जह जो सुहं पृष्ठ जह जुगवुप्पत्तीए जह तक्करणे दोण्हवि जह पासइ तह जह सव्वमुत्तविसयं जा गंठी ता पढमं जायइ य नील जायइ अतिप्पसंगो जारिस गुरुलिंग जारिसयं गुरुलिंगं जिणणियविही जिणकप्पिओ न जियलज्जो णिगिणो जीणइ य बलवंतंपि जीवो महाभिलासी जीवस्स कम्मजोगो जीवस्सवि सव्वेसुं जीवसहावातो च्चिय जुगवमजाणतो जे चेव भावस्वा जेवि य पसंत जो रज्जचायं कुणइ जो च्चिय सस्व जो चयइ सयण. जो चेव लोगिगाणं जो णिग्गतो इमाओ जो पुज विहीए जो पुन सगुणरहिओ जो विय पमाणपंच ड डंडगहणम्मिवि ण णज्जइ य तओ ण तु एवमवस्सं सहायता लेगसहायत अणु णय अवयवी ण य इह वेद. ण य इह तव. ण य इय मुच्छा. ण य उवगरणेण १३१३ 316 जय गजतसिद्धं ९८० 190 णय कुच्छिया १३३२ 326 णय कज्जमंतरेण 3 ७७५ 103 १३५२ 334 ९७४ 187 १२०३ 276 ९०६ 164 १३५० 333 ९६९ 186 १३५६ 336 ११५० 252 ७९५ 113 ७०७ 74 ८७८ 143 १०१७ 203 ११०९ 238 ११११ 239 १०३५ 210 ११२५ 243 ११३४ 247 ७८३ 101 11 ५६७ ७४८ 93 १२२१ 282 १३६९ 340 १३४७ 332 ९२० 169 ६३३ 43 ११२८ 244 ५६० 7 १०५४ 218 १२४८ 292 १०७२ 226 १०३८ 211 १११८ 241 १३०० 311 गाथाङ्क पृष्ठ १०२२ 206 णय कायवयणचेट्ठा णय गज्झमंतरेण ण य णाणापगरिसेणं ण य तस्स णेय. णय तेसिं पुवगारो यसेऽणुमाया णय ते इंदियजेणं णय देवदत्तनाणं ण य धम्मोवगरण ण य पडिवत्तिविसेसा णय पच्चक्खण ण य परिसुद्धा एसा णयमुत्ता एव ण य वीयरायचेट्ठा ण य सव्वविसयसिद्धं. ण य सव्वगयं १३२९ ण य सव्वण्णु वि इमं सामणपती ण य सामण्णेण वि णय सो सुहबज्झ णय सो तीरइ णय होंति संसयादी ण हि खरविसाण हिजं विसिट्ठ ण हि सो तुच्छ. जागा उवघायं णाणस्सवि एवं चिय णाणसहावो जीवो णाणं विसओ अण्णो णाणम्मि दंसणम्मि णाणस्स पिंडभावो जाते वि संसयादी गावरणभेदोऽवि हु णासि इह णासड़ णिच्छियमव्विवरीयं णियमा कस्सइ नियमे वि वासि न नियमेण य असुहो गाथाङ्क पृष्ठ १२३७ 288 १२३० 286 ८२८ 131 ८३६ 134 ७१७ 81 ७१८ 81 ८७९ 153 ८८९ 157 १००९ 200 ११२० तं उवसमसंवेग 241 १२२० 282 तं केवलं अमुत्तं ८९३ 160 तं जाविह संपत्ती ११०५ 237 तं दाणलाभ गंणाभावाद यत्तमप्पओज णेयप्पमेयभावो या त विसेसच्चिय तु णो वावाराभावम्मि गोवावारे सद्दो णो हे अभावो त १३०४ 313 89 304 १३२७ 324 ७३६ १२७९ ९९३ 194 १२२५ 284 १२२९ 286 १३०३ 313 ११२४ 243 ८४२ 139 ११५६ 254 १२८७ 306 ७१६ 80 ११४३ 250 १२९५ 310 325 १३८६ 345 १३११ 316 १२१८ 281 ८७१ 150 १३०१ 312 . १२६३. 298 ५५७ 6 १२४५ 291 ५५९ 6 40 ६२८ १२१३ 280 १२१६ 280 १२५८ 296 १३५७ 336 १३२८ 324 299 १२६६ ८४३ 139 ९३० 172 १२४२ 290 १२५७ 296 ९६९ 184 १०१२ 201 १०६२ 222 १२२३ 283 ११९० 270 १३७१ 340 १२५३ 294 १२५६ 295 ७६८ गाथाङ्क पृष्ठ ८०६ ७३२ ७५५ ६२३ ៖ ៖ ៖ ៈ៖៖Page Navigation
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