Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai Author(s): Lalitprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 7
________________ अपनी यात्रा शिखर की ओर आरम्भ हो जाए। और यह यात्रा ध्यान-साधना के मार्ग से गुजरती है। सत्य का उदय स्वयं के मौन से उपलब्ध होता है । सत्य का कोई उत्तर नहीं होता, उसकी केवल अनुभूति है। सत्य में तो सारे गुण समाहित हैं। जीवन, जगत और अध्यात्म का प्रथम और अन्तिम सोपान सत्य है । धर्म के सम्बन्ध में गुरुवरश्री का कहना है कि धर्म तो खोज है। धर्म वह यात्रा है जहाँ व्यक्ति किसी लीक पर नहीं चलता । अपना रास्ता खुद खोजता है । वे बार-बार कहते हैं धर्म परम्परा नहीं है, धर्म मनुष्य का जीवन है । जीवन का पवित्र कर्मों में निमज्जित होना ही धर्म है। महावीर के सूत्र धर्म की सुगंध है, जहाँ व्यक्ति आत्मचेता होकर स्वाध्याय और ज्ञान के मार्ग का अनुसरण करता है। उनके सूत्र जागरण के सूत्र हैं। वे कहते हैं धार्मिक जागा हुआ श्रेष्ठ है और अधार्मिक सोया हुआ । इन्हीं गूढ़ सूत्रों को गुरुवर ने अपनी सहज-सरल और बोधगम्य शैली में हमारे सामने प्रकट किया है। पूज्यश्री ने इन प्रवचनों में ज्ञान की वह सरस गंगा अवतरित की है, जिसमें अवगाहन कर हम कृत-कृत्य हो जाते हैं । यहाँ तक कि वे ज्ञानी को भी परिभाषित कर देते हैं । वह जीवन में किसी प्रकार की हिंसा न करे, आत्म- हिंसा भी नहीं । उनकी दृष्टि जीवन-विज्ञान से जुड़ी है। उन्होंने मनुष्य - जीवन का निकट से अध्ययन किया है । उसी का परिणाम है कि उनके दिए गए दृष्टांत चेतना को झिंझोड़ देते हैं । उन्होंने महावीर के माध्यम से जीवन को विधायक रूप से देखने का अवसर दिया है । साधना की धरा पर ध्यान के पुष्प खिलाए हैं। धर्म हमारे जीवन की रोशनी बने, प्रेरणा बने, सुख-शांतिपूर्वक जीवन का आधार बने । बस, यही है धर्म पर दिये गये संदेशों का मर्म । पूज्यश्री ललितप्रभ जी ने सचमुच वह बयार चलाई है जिससे जीवन पुष्पित और सुगंधित हो उठा है। वे स्वयं सत्य के खोजी हैं और उसी सत्य को शब्दों में अभिव्यक्त करने का प्रयास है--' धर्म आखिर क्या है?" आइए, हम इन प्रवचनों में अवगाहन कर स्वयं को कृत - कृत्य करें । कदम-दर-कदम आगे चलने से ही मंजिल मिलती है। पहला कदम ठीक से उठ जाए तो कण्टकाकीर्ण पथ भी सुगम हो जाता है । यह पुस्तक धर्म-प्रेमियों को आन्दोलित करेगी और सत्य-धर्म में रुचि जाग्रत करेगी, ऐसा विश्वास है । अहोभाव भरे अशेष प्रणाम । Jain Education International For Personal & Private Use Only 'मीरा' ( श्रीमती लता भंडारी) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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