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(देव शिला
(१०१) चरणचिन्ह जिस स्थल से मुांनेगण मोक्ष गमन करते हैं अथवा जहां से उनका समाधिमरण होता है वहां पर उगको रगृति के लिए चरण चि.हों को स्थापना की जाने की परम्परा है। जिन स्थानों पर भूगर्भ से प्रतिमा निकली हो अथवा जहां महानियों का आगमन हुआ हो वहां भो चस| चिन्ह स्थापित किये जाते हैं। चरण चिन्ह के ऊपर एक मंडप नुमा स्वना निर्माण की जाती है तथा उस पर शिखर चढाया जाता है। इसे चरण छतरी भी कहते हैं।
चरण छतरी में चरण की स्थापना वेदी पर की जाती है। वेदी का आकार डेढ़ हाश्य लम्बा डेढ हाथ चौड़ा वर्गाकार होना चाहिये । इस पर चरण चिाह की आकृति बनायें । वेदी की ऊँचाई डेड हाथ रहने । वेदी संगमरमर अथवा अन्य अच्छे पाषाण की बना सकते हैं। चरण चिन्हों की आकृति इस प्रकार बनायें कि पांध की अंगलियां (अ भागउत्तर या पर्व की ओर हो । राणाभिषेक का जल उत्तर या पूर्व की ओर निकले इस प्रकार नाली निकालें।
यहां यह स्मरणीय है कि जैन परम्परा में चरण बिन्ह की अर्चना की जाती है. चरण अथवा चरण पाटुका की नहीं । चरण ध-II-1 से खंडित प्रतिमा का आभास होता है।
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चरण चिन्ह