Book Title: Devshilp
Author(s): Devnandi Maharaj
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 470
________________ देव शिल्प तीर्थकर धर्मनाथ धर्मनाथ जिन वल्लभ प्रासाद तल का विभाग प्रासाद की वर्गाकार भूमि के २८ भाग करें। उसमें से कोण ४भाग, घा' जिनवल्लभ प्रासाद - धर्मद प्रासाद प्रस्थ भद्रार्ध कोणी भननन्दी ये सभी अंग समदल में रखें। ४ भाग, ४ भाग, १ भाग लथा शिखर की सज्जा कोण के ऊपर उसके ऊपर प्ररथ के ऊपर उसके ऊपर जी के उपर नन्दी के ऊपर भद्र के ऊपर प्रत्यंग श्रृंग संख्या कोण प्रस्थ कोणी नंदी भद्र प्रत्यंग शिखर कुल १ भग्ग बनायें ८. จ २ क्रंग चढ़ाएं (केसरी, सर्वतोभद्र) १ तिलक चढाएं; २ क्रम चढ़ाएं; १ तिलक चढ़ाएं; श्रृंग चकाएं २ श्रृंग चढाएं : ४ उश्रृंग चढाएं : ८ चढ़ाएं। तिलक संख्या कोण ५६ ११२ प्रस्थ १६ १६ ५६ ४ ८. ४४८ २२५ ल धर्मवृक्ष प्रासाद इसका निर्माण धर्मनाथ जिन बल्लभ प्रासाद के पूर्वोक्त मान से करें तथा उसमें प्रस्थ के ऊपर तिलक के स्थान पर एक एक श्रृंग चढ़ावें । श्रृंग संख्या- प्रस्थ पर १२० शेष पूर्ववत् कुल २३३ तिलक संख्या का पर ४ कुल- ४ १२

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