Book Title: Devshilp
Author(s): Devnandi Maharaj
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 499
________________ (देव शिल्प) शाखाशस्याशाखोदरशाल भंजिकाशाला शिखर शिर शिरपत्रिकाशिरावटीशुक नास शुण्डिकाकृतिशुद्ध संधाटश्रृंगश्रीवत्सषड्दारूसभा मंडपसभा मार्ग (४७) द्वार की चौखट का पक्खा, जो भिति स्तंभ के समान होता है प्रासाद के २/५ गान का कोली मंडप शाखा का पेटा भाग नाच करती हुई पाषाण की पुतलियां प्रासाद, गभारा, छोटा कमरा, भद्र, परसाल, बरागदा, ढोल के आकार की छत सहित आयताकार मन्दिर शिवलिंग के आकार वाला गुम्बद, मन्दिर का ऊपरी भाग या छत, सामान्यतः उत्तर भारतीय शिखर वक्र रेखीय होता है, दक्षिण भारतीय शिखर गुम्बदाकार या अष्टकोण या चतुष्कोण होता है. शिखर शिरावटी, ग्रास मुख ग्रास मुख वालो पट्टी, दारा भरगी के ऊ पर प्रासाद की नासिका, उत्तर भारतीय शिखर के राम्मुख भाग से संयुक्त एक बाहर निकला भाग जिसमें एक बड़े चैत्य गवाक्ष की संयोजना होती है। शुक नासा शिखर के जिस भाग पर सिंह की मूर्ति बनाई जाती है, वह स्थान हाथी गुम्बद का समतल चंदोवा, छत्त छोटे- छोटे शिखर के आकार वाले अंडक एक ही सादा श्रृंग दो दो स्तंभ और उसके ऊपर एक एक पाट रंग मण्डप एक प्रकार की अलंकृत छत जिसकी रचना अनेकों मंजूषाकार सूच्यग्रों से होती है। तीन प्रकार की आकृति वाली छत अवनतोन्नत तलवाली ऐसी छत जो साधारणः पंक्तिवद्ध सूचियों रो अलंकृत होती है। तीर्थंकर प्रभु की बारह खण्डों की धर्मसभा, तीन प्राकार वाली बेदी बनावट सहित वर्गाकार . देव प्रतिष्ठा की विधि विशेष यज्ञ शाला प्रासाद के १/२मान का कोली मंडप चतुर्मुख, एक प्रकार का चारों ओर सम्मुख मंदिर, चारों ओर मूर्तियों से संयोजित एक प्रकार की मंदिर अनुकृति खड़ा अंतराल, वारिमार्ग, बरसाती जल निकालने की बारीक नालियां, जहां फालनाओं के जोड़ मिलते हैं समतल वितान समवशरणसमचतुरनसकलीकरणसत्रागारसभ्रमासर्वतोभद्र सलिलांतर

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