Book Title: Devshilp
Author(s): Devnandi Maharaj
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 497
________________ ४७५ देव शिल्प मृषामृतमेखलामेद्रमेरु. यक्षयमचुचीयानरत्न शाखारथरंग गंडपरंग भूमिरश्चिकारन्ध्रराजसेनरीतिरुचकरुपकण्टरुप स्तम्भरूप शाखाराक्षराराज सेनकरेखालयललितासन लम्बा अलिन्द, बगडा मिट्टो, मृतिका दीवार का खांचा पुरुष चिन्ह, लिंग प्रासाद विशेष पर्वत आय से व्यय जानने की संज्ञा सम्मुख लम्बा गर्भगृह आसन, सवारी प्रवेश द्वार का हीरक अलंकरण सहित पक्खा मन्दिर का प्रक्षेप, कोने के समीप का दूसरा कोना, फालना विशेष स्तम्भ आधारित मंडप जो चारों ओर अनावृत्त होता है गर्भगृह के सामने पांचवां नीचा मंडप, नृत्य मंडप भद्र का गवाक्ष, आला प्रवेश द्वार भण्डप की पीठ के ऊपर का थर पीतल धातु समचौरस स्तंभ आकृतियों रो अलंकृत एक अंतरित पट्टी या पंक्ति द्वार शाखा के मध्य का स्तम्भ प्रवेश द्वार का आकृतियों से अलंकृत पक्खा आय से ध्यय अधिक जानने की संज्ञा कक्षा या छज्नेदार गवाक्ष का सबसे नीचे का गोटा खांचा, कोना मकान, गृह विश्राम का एक आसन जिसमें एक पैर मोड़कर पीठ पर रखा होता है तथा दूसरा पीठ से लटककर मनोज्ञा लगता है स्त्री युगल वाली प्रासाद की जंघा मुख हीरा आकाशीय कल्पित एक संज्ञा शरीर ग्रास, जलचर विशेष, मगर प्रतिकर्ण वाला स्तंभ अश्वथर लाटीयक्त्रवनवत्स वपुस् वरालवर्धमानवाजिन्

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