Book Title: Devshilp
Author(s): Devnandi Maharaj
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 485
________________ ४६३ (देव शिल्प शांति विधान आदिशाभी यथोचित समय पर करना चाहिये। मन्दिर के शिखर की विभिन्न जातियों के उपयुक्त भेद का ही शिखर बनाना चाहिये । शिखर पर ध्वजा अवश्य (रोहित करें। मन्दिर निर्माण से न केवल मन्दिर निर्माणकर्ता बल्केि उपासक, समाज, साधु राष्ट्र सभी लाभान्वित होते हैं। अतः मन्दिर निर्माण के साथ ही उसकी व्यवस्था एर्य शुचिता बढाये रटाना परम आवश्यक है । भन्दिर निर्माण करने से तथा उसमें प्रतिमा स्थापना करने से जितना पुण्य अर्जित होता है उससे कई गुना अधिक जीर्ण मन्दिर के पुनर्निर्माण से प्राप्त होता है अतएव मन्दिरों का जीर्णोद्धार अवश्य ही करायें। जिनेन्द्र प्रभु के केवल ज्ञान से निःसृत जिनवाणी के अशह महासागर की एक बिन्दु मात्र ही 7. उपलका साहित्य का मूल है ! मुद्र सरीरंवे अल्प बुद्धि ने इस महासागर में उतरने का टुस्साहरा किया है। मैंने अपनी तरफ पे यथाशक्ति टिषय समझाने का प्रयास किया है फिर भी मूलें रह जाना स्वाभाविक है। विद्धान पाठक गण मेरी भूलों को ध्यान न देकर उसमें जिनागभ सम्मत संशोधन कर लेवेंगे, यह विश्वास है। Tradleसावा सिद्ध क्षेत्र नागिरि १५/०७/२००० प्रज्ञाश्रमण आचार्य देवनन्दि मुनि

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