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(देव शिल्प)
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जीर्णोद्वार हेतु वास्तु पातन की दिशा
जीर्णोद्धार हेतु वास्तु पिराने का कार्य ईशान दिशा से प्रारंभ करना चाहिये तथा ईशान से वाच्य एवं आग्नेय की और यह कार्य करते हुए नैऋत्य दिशा का भाग सबसे अंत में गिराना चाहिये। गिराये हुए मलबे को उत्तर, ईशान तथा पूर्व दिशा में एकत्रित नहीं करें । इस मलबे को दक्षिण, नैऋत्य अथवा पश्चिम में रखें।
जीर्णोद्धार का महान पुण्य
सभी शास्त्रकारों ने मन्दिर निर्माण में असीम पुण्य अर्जन कहा है। किन्तु यदि प्राचीन जीर्ण मन्दिर का उद्धार कर उरो नवनिर्मित किया जाये अथवा जीर्णोद्धार किया जाये तो आठ गुना अधिक पुण्य का अर्जन होता है अतएव नव मंदिर निर्माण करने के स्थान पर प्राचीन मन्दिर का जीर्णोद्वार करने प्रा. नं. ८/६ में विशेष अनुराग रखना चाहिये ।
मन्दिर के अतिरिक्त बावड़ी, कुआं, तालाब तथा भवन का जीर्णोद्धार करने से भी आत गुना पुण्य प्राप्त होना है।