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(देव शिल्प
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'वराज्यादि प्रासाद
वैराज्यादि प्रासाद पच्चीस प्रकार के हैं। शिखर एवं भद्रादि की अपेक्षा रो ये भेद किये जाते हैं। ये प्रासाद नागर जाति के हैं। उनके नाम इरा प्रकार हैं :१. वैराज्य २. नन्दन ३. सिंह ४. श्रीनन्दन ५. मन्दर । ६. मलय ७. विमान ८. सुविशाल ९. त्रैलोक्य भूषण १०. माहेन्द्र ११. रत्नशीर्ष १२. शतश्रृंग १३. भूधर १४. भुवनमंडल १५ त्रैलोक्य विजय ६. पृथ्वी वल्लभ७. महीधर १८. कैलाश १९. नवमंगल २०. गंधमादन २१. सर्वांगसुंदर २२. विजयानन्द २३. सर्वांगतिलक २४. महाभोग २५. मेरु
निम्न लेखित सारणी में विभिन्न देव देवियों के अनुकूल मंदिरों के नाम तथा उनके निर्माण का फल दर्शाया गया है। यशाशक्ति मूलनायक मंदिर इसी के अनुरुप बनाना चाहिए।
देवताओं के अनुकूलमंदिर एवं उनका फल
देव
मंदिर का नाम वैराज्य सिंह माहेन्द्र. सितसंग कैलाश महाभोग महादेव
सर्व देव देव-देवियां, पार्वती सर्व देव ईश्वर शंकर रावदेव रावदेव,
ब्रह्मा कथित, विश्वकर्मा निर्गित सौभाग्य, धन, पुत्र लाभ राज्य लाभ शुभ शुभ सर्व कार्य फलदाता (सिद्धि) मेरु
मंदिर निर्माता के लिये आवश्यक है कि वह देवों के अनुरुप ही मंदिर का निर्माण करें। यदि अल्प अर्थशक्ति हो तो लधुआकार में निर्माण करें किन्तु यदा-तद्वा निर्माण न करें। शास्त्र के अनुरुप निर्माण करने से मंदिर निर्माणकर्ता एवं पूजक दोनों को कल्याणकारक होता है।