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(देव शिल्प
(३८७) प्रासादों के भेद प्राचीन शास्त्रों में प्रासादों के अनेकानेक भेद बनाये गये हैं। जिन देवों ने जिस प्रकार की पूजा की उनके अनुरुप प्रासादों का उद्भव हुआ। ये चौदह प्रकार के भेदों से जाना जाता है - देवों के पूजन से
नागर जाति के प्रासाद दानवों के पूजन से । आदिड़ जाति के प्रासाद गन्धर्यों के पूजन से
लतिन जाति के प्रासाद यक्षों के पूजन से
विमान जाति के प्रासाद विद्याधरों के पूजन से
मिश्र जाति के प्रासाद वसु देवों के पूजन से
वराटक जाति के प्रासाद नाग देवों के पूजन से
सान्धार जाति के प्रासाद नरेन्द्रों के पूजन से
भूमिज जाति के प्रासाद सूर्य के पूजन से
विमान नागर जाति के प्रासाद चन्द्र के पूजन से
विमान पुष्पक जाति के प्रासाद पार्वती के पूजन से
वलभी जाति के प्रासाद हरसिद्धि देवियों के पूजन से सिंहावलोकन जाति के प्रासाद व्यन्तर देवों के पूजन से फांसी जाति के प्रासाद इन्द्र लोक के पूजन से स्थारुह (दारुजादि) जाति के प्रासाद
जिनेन्द्र प्रासादों के लिए उत्तम जाति के प्रासादों का निर्माण करना निर्माता एवं समाज दोनों के लिए अतीव हितकारी हैं। प्रासादों की मुख्य जातियों में से निम्न जतियों के प्रासाद उत्तम कहे गये हैं* :
१. [[गर २. द्राविड़ ३. भूमिज ४, लतिन ५. सांधार ६. विमान -नागर ७. विमान पुष्पक ८. मिश्र (श्रृंग व तिलक युक्त)
__ नागर जाति के प्रासाद
इन प्रासादों की तलाकृति को रुप, गवाक्षयुक्त भद्र से बनाया जाता है। इनमें शिखर अनेकों प्रकार के होते हैं । अनेकों प्रकार के वितान तथा श्रृंगयुक्त फालना से इन प्रासादों को शोभायमान किया जाता है।
द्राविड़ जाति के प्रासाद
इस प्रकार के प्रासादों में लीन अथवा पांच पीठ बनाये जाते हैं। पीठ पर वेदी का निर्माण किया जाता है। उनकी रेखा (कोना ) का निर्माण लता एवं श्रृंगों से युक्त किया जाता है।
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* झागप्रकाश पार्णव का चारतु विद्या जिन प्रासाद अधिकार