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(देव शिल्प
२२४) पीठिका पीटिका का तात्पर्य है हमेशा बैठा जा सकगे वाला आसन । राजा महाराजा सिंहासन पर बैठते हैं। तीर्थकर प्रभु कमलासन पर बैठते हैं। द्रविड़ ग्रन्थों में नौ प्रकार की पीठिकाओं का उल्लेख
१. भद्र पीठ २.पदम पीठ ३, महान्बुज पोठ ४. वज्र पीठ ५. श्रीधर पीठ ६.पीठ पद्म ७. महावज ८. सौग्य ९. श्रीकाम्य दक्षिण एवं उत्तर दोनों क्षेत्रों में भद्रपीठ, पद्मपीठ तथा महान्बुज पीठ का निर्माण देखा जाता है।
प्रसंगवश यह ध्यान रखें को पीठिका एवं वाहन पृथक-पृथक हैं। हनुमान के लिए ऐसा नहीं है क्योंकि वे श्रीराम के चरणों के समीप सेवक मुद्रा में बैठते हैं। खड़े हुए रुप में वे एक हाथ में गदा तथा दूरारे में पर्वत उठाते हैं। प्रमाण मुद्रा में भी हनुमान की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। बालकृष्ण का कोई आसन नहीं है किन्तु राजा रुप में कृ| सिंहासन पर बैठते हैं।
भद्रपीठ
महाम्बुज पीठ
CHIKOTABHI
पद्मपीठ
'सिंहासन (पीठिका