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(देव शिल्प
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प्राकृतिक आपदा आने पर कर्तव्य
यदि मन्दिर वास्तु अथवा परिसर में कोई प्राकृतिक आपदा आती है जैसे बाढ़, भूकम्प, बिजली गिरना, दुर्घटना इत्यादि तो प्रथम मन्दिर की सफाई करें तथा पश्चात् भगवान का पूजन करें। इसके उपरान्त वृहद शांति यज्ञ तथा पुण्याह वाचन करना चाहिये। इसके पश्चात् जीर्णोद्धार का कार्य आरम्भ करें ।
खंडित प्रतिमाओं का संरक्षण
प्राचीन काल से ही प्रतिमाओं के भंग हो जाने पर उनके विसर्जन कर देने की
परम्परा है। किन्तु वर्तमान काल में इसमें एक नई शैली विकसित हुई है। इन प्रतिमाओं को पुरातत्व की दृष्टि से अमूल्य निधि माना जाता है। इन प्रतिमाओं को देखकर प्राचीन इतिहास, वास्तु शिल्प, मूर्तिकला इत्यादि के विषय में विस्तृत जानकारी मिल जाती है। धर्म के गौरवशाली इतिहास से अन्य लोग परिचित भी होते हैं। अतएव यदि प्रतिमाओं एवं मन्दिरों के खण्डों का संरक्षण पुरातत्व की दृष्टि से किया जाये तो अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है।
जिस भवन में प्राचीन प्रतिमाओं का संरक्षण किया जाना है, उसमें पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था हो तथा सोड, दीमक आदि से सुरक्षित हो। वायु, धूल, आदि का प्रभाव सीधे न पड़ता हो, सीधे धूप न आती हो, प्रतिमाओं के सुरक्षित रखरखाव की पूरी व्यवस्था हो, ऐसा भवन ही संरक्षण के लिये उपयुक्त है। भवन का मुख उत्तर में हो तथा द्वार ईशान भाग में हो। प्रतिमाओं को दक्षिणी दीवाल तथा पश्चिमी दीवाल के समीप रखा जाये। ईशान भाग खाली रखें। वहां पर कार्यरत व्यक्ति उत्तर मुख बैठकर कार्य करे ।
प्रतिमा खंडित होने पर प्रायश्चित
जिस व्यक्ति के हाथ से प्रतिमा खंडित हुई हो उसे उस दिन उपवास करना चाहिये तथा निग्रंथ आचार्य परमेष्टी पास जाकर विनयपूर्वक घटना का निवेदन कर प्रायश्चित की प्रार्थना करना चाहिये। साथ ही जिन तीर्थंकर की प्रतिमा भग्न हुई है, उन्हीं तीर्थंकर की प्रतिमा उसी आकार की स्थापित करवाना चाहिये। गुरु की आज्ञा अनुसार पूजन, विधान, दान आदि करवाना चाहिये। संकल्प पूरा होने तक रस त्याग आदि संकल्प लेना चाहिये।