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(देव शिल्प
C१४४)
देहरी
आवास की भांति मंदिर में भी दरवाजों की चौखट एवं देहरी का विशिष्ट महत्व है । द्वार प्रमुख हो अथवा भीतर के, चौखट युक्त दरवाजा होना आवश्यक है। वर्तमान में बिना चौखट अथवा मात्र तीन भुजाओं के फ्रेम में दरवाजा लगाने का चलन है किन्तु यह उपयुक्त नहीं है। दरवाजा चौखट युक्त होना श्रेष्ठ एवं उपयोगी है।
चौखट में नोचे की भुजा को उदुम्बर या देहरी कहा जाता है। ऊपर की भुजा को उत्तरंग कहा जाता है। प्रवेश या निर्गम करते समय देहरी के ऊपर से जाया जाता है। उपासक गण मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व देहरी को नमन करते हैं उसके पश्चात् भीतर प्रवेश करते हैं। देहरी को नमन करना मात्र भक्ति का अतिरेक नहीं है, न ही किसी प्रकार का आडम्बर । वास्तव में जिन मन्दिर स्वयं भी एक पूज्य देवता है। जैन आगम शास्त्रों में नब देवताओं का व्याख्यान किया गया है। ये सभी नव देवता पूज्य हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं -
अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु जिन धर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिन चैत्यालय .
चैत्यालय (मन्दिर) स्वयं भी एक देवता होने से पूज्य हैं। उपासकगण गन्दिर में प्रवेश करते समय देहरी को स्पर्श कर नमन करते हैं । उराके पश्चात ही गन्दिर में प्रवेश करते हैं। स्त्रियां भी पर्वादिक के समय देहरी की कुंकुम आदि द्रव्यों से पूजा करती हैं। इस प्रकार चैत्यालय की देहरी अपना विशिष्ट स्थान रखती है। अतएव बिना देहरी के मुख्य द्वार बनाने की कल्पना भी नहीं करना चाहिये।
देहरी का पर्याप्त व्यवहारिक महत्व भी है। रेंगकर चलने वाले प्राणी सर्प, गोह, छिपकली, बिच्छू आदि देहरी होने से भीतर प्रवेश करने में समर्थ नहीं होते।
देहरी का निर्माण कराते समय उसमें उपयुक्त नकाशो भी कराना चाहिये । शोभायुक्त देहरी द्वार की शोभा संवर्द्धित करती है।
मन्दिर के प्रवेश द्वार देहरी के बगैर बनाना अत्यंत अशुभ है। गर्भगृह में भी देहरी युक्त चौखट अवश्य बनवाना चाहिये ।