Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha View full book textPage 7
________________ सहाय दे नहीं सकते । श्राद्धविधि में कहा है कि देवद्रव्य के चंदन से अपने ललाट आदि में तिलक भी नहीं कर सकते । देवद्रव्य के जल से हाथ पैर भी नहीं धो सकते। मंदिर के बाजे भी गुरु के आगे नहीं बजा सकते । श्री जिनेश्वर देव की भक्ति पूजा तो श्रावक को खुद के द्रव्यसे ही करनी चाहिए। किन्तु जहाँ श्राक्कों के घर न हो वहाँ देवद्रव्य से भी प्रभुपूजा करानी चाहिए । प्रतिमाजी अपूज (अपूज्य) तो रहने ही नहीं चाहिए । जहाँ श्रावक खर्च करने के लिए शक्तिशाली नहीं हो, वहाँ जैनेतर पूजारी को पगार, केशर, चंदन, अगरबत्ती आदि का खर्च देवद्रव्य में से कर सकते हैं । पर इतना तो पक्का ध्यानमें रखना कि श्रावक को पूजा के काम में तो यह द्रव्य इस्तेमाल न हो । पूजारी को निजी या साधारण खातेमें से पगार देना चाहिए । जैन वस्ति के अभाव में एवं प्रतिमाजी अपूज रहते हो तो प्रभुपूजा तथा मंदिर संबंधी सभी खर्च देवद्रव्य से हो सकता है। परंतु जैन पूजारी को तो देवद्रव्य में से पैसे दे ही नहीं सकते ! ऐसा न करने पर देनेवाले और लेनेवाले दोनों पाप के भागीदार बनते है। इस खाते का द्रव्य पहले खातेमें जिनप्रतिमा के काममें वापर सकते है ये दोनों द्रव्य देवद्रव्य संबंधी पवित्र द्रव्य होने से नीचे के पांचो खातों में इसका कभी भी उपयोग होता ही नहीं। ३. ज्ञानद्रव्य :- आगम - शास्त्रपूजन, प्रतिक्रमण के सूत्रों की बोली, कल्पसूत्र, बारसासूत्र अथवा अन्य कोई भी सूत्र बोहराना आदि के चढावे बोले हों या द्रव्य चढाया जाता हो वह सब ज्ञानद्रव्य गिना जाता है। ज्ञानद्रव्य का उपयोग :- इस द्रव्य में से साधु-साध्वीजी को पढाने के लिए जैनेतर पंडित को पगार दे सकते हैं। साधु-साज़ीजी को पढने । देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * २Page Navigation
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