Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan SamsthaPage 17
________________ देव के आगे रखे दीपक से अपने घर का काम करती थी और उसी तरह धूप के लिए धूपदानी में जलते अग्नि से चूल्हा भी जलाती थी । इन दोनो पाप से तेरी मां ऊंटडी रूप से पैदा हुई है । तेरे को और तेरे घर को देखकर उसको शान्ति होती है । अब तू उसको तेरे माँ के नाम से बुला और दीपक की तथा धूप की बात कर- जिससे उसको जाति - स्मरण ज्ञान और प्रतिबोध होगा ! देवसेन सेट ने गुरु भगवन्त के कहे मुताबिक बात की। अपना पूर्वभव सुनकर ऊंटडी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । गत जन्म में किये देवद्रव्य- भक्षण के पाप का भारी पश्चात्ताप हुआ । अरे ! इस पाप से उत्तम कोटि का मानव जन्म गँवा कर पशु में जन्म लिया अब मेरा क्या होगा ! मैं धर्म कैसे कर सकूंगी । इस चिंतन से उसने धर्म पाया और गुरु के पास सचित्तादि के त्याग के नियम लिए । धार्मिक जीवन जीने लगी । अन्त में शुभध्यान में मरकर देवलोक में गई । इसलिए अपने पूर्वाचार्य कहते है कि मन्दिर की कोई भी चीज या उपकरण का अपने स्वयं के काम में उपयोग नहीं करना चाहिए । जिससे देवद्रव्य के भक्षण का पाप न लगे । जिस तरह मन्दिर की कोई भी चीज को अपने कार्य में उपयोग करना पाप है । उसी तरह मन्दिर की कोई भी अच्छी चीज अदल बदल करना भी भारी पाप-बन्ध का कारण है और इस जन्म में भी दरिद्रतादि कई प्रकार से दुःखदायी होना पड़ता है । इस बात को जानने के लिए शुभंकर श्रेष्टि की कथा शास्त्रों में लिखी है। वह इस तरह है । कांचनपुर नगर में शुभंकर नाम के सेट रहते थे । संस्कारी और सरल स्वभावी शुभंकर सेट को प्रतिदिन जिनपूजा और गुरु वंदन करने का नियम था । एक दिन सुबह में कोई जिनभक्त देव ने दिव्य चावल से प्रभुभक्ति की । वह दिव्य चावल की तीन ढगलियां मन्दिर के रंगमंडप में देखी। ये चावल देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * १२Page Navigation
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