Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 61
________________ करने वाले की उपेक्षा करता है वह जीव मंदबुद्धिवाला होता है और पाप कर्म से लेया जाता है। __ आयाणं जो भंजइ पडिवन्न – धणं न देइ देवस्स । गरहंतं चो - विक्खइ सो वि हु परिभमइ संसारे ॥ जो देवद्रव्यादि के मकानादि का भांडा, पर्युषणादि में बोले गये . चढावे संघ का लागा और चंदें आदि में लिखवाई गई रकम देता नहीं है या विना ब्याज से देरी से देता है और जो देवद्रव्य की आय को तोडता है, देवद्रव्य का कोई विनाश करता हो तथा उगाही आदि की उपेक्षा करता हो वह भी संसार में परिभ्रमण करता है। श्राद्धविधि १२९ __ चेइदब्ब विणासे तद्, दव, विणासणे दुविहभेए । साहु उविक्खमाणो अणंत-संसारिओ होई। चैत्यद्रव्य यानी सोना चांदी रुपये आदि भक्षण से विनाश करे और दूसरा तद् द्रव्य यानी २ प्रकार का जिनमंदिर का द्रव्य नया खरीद किया हुआ और दूसरा पुराना मंदिर के ईट, पत्थर, लकडादि का विनाश करता हो और विनाश करने वाले की उपेक्षा करता हो । यदि साधु भी उपेक्षा करे तो वह भी अनंतसंसारी होता है। चेइअ दव्वं साधारणं च भक्ने विमूढ मणसावि । परिभमइ, तिरीय जोणीसु अन्नाणितं सया लहई। संबोध प्र. देव १०३ संबोध प्रकरण में कहा है कि देवद्रव्य और साधारण द्रव्य मोह से ग्रसित मनवाला भक्षण करता है वह तिर्यंच योनि में परिभ्रमण करता है और हमेशा अज्ञानी होता है। पुराण में भी कहा है कि देवद्रव्येन या वृद्धि गुरु द्रव्येन यद् धनं । तद् धनं कुल नाशाय मृतो पि नरकं व्रजेत् ॥ देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ५६

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