Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan SamsthaPage 62
________________ देवद्रव्य से जो धनादि की वृद्धि और गुरुद्रव्य से जो धन प्राप्त होता है वह कुल - का नाश करता है और मरने के बाद नरक गति में ले जाता है। चेड़अदव्यं साधारणं च जो दुहड़ मोहिय-मड़ओ । धम्मं च सो न याणेड़ अहवा बद्धाउओ नरए ॥ संबोध प्रकरण :जो मनुष्य मोह से ग्रस्त बुद्धिवाला देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य और साधारण द्रव्य को स्वयं के उपयोग मे लेता है वह धर्म को नहीं जानता है । और उसने नरक का आयुष्य बांध लिया है ऐसा समझना । चेइअ - दव्व-विणासे ईसिघाए पवयणस्स उड्डाहे । संजड़- चउत्थभंगे मूलग्गी बोहि - लाभस्स । संबोध प्रकरण गा. १०५ में लिखा है कि देवद्रव्य का नाश, मुनि की हत्या, जैन शासन की अवहेलना करना - करवाना और साध्वी के चतुर्थव्रत को भंग करना बोधिलाभ (समकित ) रुपी वृक्ष के मूल को जलाने के लिए अग्नि समान है । स च देवद्रव्यादि - भक्षको महापापो प्रहत-चेतसः । मृतो पि नरकं अनुबंध - दुर्गतिं व्रजेत् ॥ महापाप से नाश हो गया है मन जिसका ऐसा व्यक्ति देवद्रव्यादिं का भक्षक करके मरने पर दुर्गति का अनुबंध कर नरक में जाता है । प्रभास्वे मा मतिं कुर्यात् प्राणैः कण्ठगतैरपि । अग्निदग्धाः प्ररोहन्ति प्रभादग्धो न रोहयेत् ॥ - (श्राद्धदिन- कृत्य १३४ ) :प्राण कंठ में आने पर भी देवद्रव्य लेने की बुद्धि नही करना चाहिए क्योंकि अग्नि से जले हुए वृक्ष उग जाते है लेकिन देवद्रव्य के भक्षण के पाप से जला हुआ वापिस नहीं उगता । देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ५७Page Navigation
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