Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 46
________________ १३. क्लीन एडवांस (Clean Advance) कदापि नहीं देना स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है, यह विषय इस पुस्तिका में स्पष्ट और सचोट रीति से शास्त्रानुसारी परम्परा से जो सुविहित पापभीरु महापुरुषों द्वारा विहित है - प्रतिपादित और सिद्ध हो चुका है। अब प्रश्न यह होता है कि देवद्रव्य की व्यवस्था और उसकी रक्षा किस प्रकार की जाय ? उसका सदुपयोग किस तरह करना ? इस सम्बन्ध में पू. सुविहित शिरोमणि आचार्य भगवन्त श्री विजयसेन सूरीश्वरजी महाराज ने श्री ‘सेनप्रश्न' ग्रन्थ में जो फरमाया है, उन प्रमाणों द्वारा इस विषय की स्पष्टता करना आवश्यक होने से वे प्रमाण यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं । सेनप्रश्न :- उल्लास दूसरा पं. श्री कनकविजयजी गणिकृत । प्रश्नोत्तर :- जिनमें ३७ वां प्रश्न है कि, 'ज्ञानद्रव्य-देवकार्य में लगाया जा सकता हैं या नहीं ? यदि देवकार्य में लगाया जा सकता है तो देवपूजा में या प्रासादादि के निर्माण में ? इस प्रश्न के उत्तर में स्पष्टरूप से बताया गया है कि, 'देवद्रव्य केवल देव के कार्य में लगाया जा सकता है और ज्ञानद्रव्य ज्ञान में तथा देवकार्य में लगाया जा सकता है । साधारण द्रव्य सातों क्षेत्र में काम आता है। ऐसा जैन सिद्धान्त है...।' __इससे यह स्पष्ट है कि स्वप्न -- द्रव्य शास्त्रानुसार एवं सुविहित परम्परानुसार देवद्रव्य ही है तो उसका सदुपयोग देव की भक्ति के निमित्त के अतिरिक्त अन्य कार्यों में किन्हीं भी संयोगों में नहीं हो सकता। श्रावक देवद्रव्य को ब्याज से ले सकता है या नहीं ? श्रावक को देवद्रव्य व्याज से दिया जा सकता है या नहीं ? तथा देवद्रव्य की वृद्धि या रक्षा कैसे करनी ? इसके सम्बन्ध में 'सेनप्रश्न' के दूसरे उल्लास में, मा देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ४१

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