Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan SamsthaPage 35
________________ ८. पू. आ. श्री प्रेमसूरिजी म. देवद्रव्य को मंदिर-साधारण में जाने का आक्षेप मिथ्या है। प.पू. पाद आचार्य देव श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. के तरफ से शान्ताक्रुझ मध्ये देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक जमनादासभाई योग्य धर्मलाभ । आपका पत्र मिला, पढ़कर समाचार जाने । सूरत-भरुच, अहमदाबाद, महेसाणा और पाटन में मेरी जानकारी के अनुसार किसी अपवाद के सिवाय स्वप्न की आय देवद्रव्य में जाती है । बडौदा में पहले हंसविजयजी लायब्रेरी में ले जाने का प्रस्ताव किया था परन्तु बाद में उसे बदलकर देवद्रव्य में ले जाने की शुरूआत हुई थी। खंभात में अमर - शाला में देवद्रव्य में ही जाता है । चाणस्मा में देवद्रव्य में जाता है । भावनगर की निश्चित जानकारी नहीं है। अहमदाबाद में साधारण खाता के लिए प्रतिघर से प्रतिवर्ष अमुक रकम लेने का रिवाज है जिससे केशर, चन्दन, धोतियां आदि का खर्च हो सकता है। ऐसी योजना अथवा प्रतिवर्ष शक्ति अनुसार पानी की योजना चलाई जाय । परंतु साधारण खाते में ले जाना तो उचित नहीं लगता। तीर्थंकर देव को लक्ष्य में रखकर ही स्वप्न है तो उनके निमित्त से उत्पन्न रकम देवद्रव्य में ही जानी चाहिए। “गप्प-दीपिका समीर" नाम की पुस्तिका में प्रश्नोत्तर में पूज्य स्व. आचार्यदेव श्री विजयानंदसूरिजी का ऐसा ही अभिप्राय छपा हुआ है। सबको धर्मलाभ कहेना। द. हेमंतविजय के धर्मलाभ पा देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३०Page Navigation
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