Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

Previous | Next

Page 39
________________ से ही यह आय है । ध्यान में रखना चाहिए कि च्यवन, जन्म, दीक्षा ये कल्याणक भी श्री अरिहंत परमात्मा के ही है । इन्द्रादिकों ने श्री जिनेश्वर भगवान की स्तुति भी गर्भावतार से ही की है। चौदह स्वप्नों का दर्शन अरिहन्त भगवान कुक्षि में आवे तभी उनकी माता को होता है। तीन लोक में प्रकाश भी इन तीनों कल्याणको में होता है । अतः धार्मिक जनां के लिए गर्भावस्था से ही अरिहंत भगवान है । (सागर समाधान में से) पू. हंस विजयजी म. का पत्र श्री पालनपुर संघ को मालूम हो कि आपने आट बाबत का स्पष्टीकरण करने के लिए मुझे प्रश्न पूछे हैं। उनका उत्तर मेरी बुद्धि के अनुसार आपके सामने रखता हूं । प्रश्न- १ : पूजा के समय घी बोला जाता है, उसकी उपज किस खाते में जाती है ? उत्तर :- पूजा के लिए घी की उपज देव द्रव्य के रूप में जीर्णोद्धार आदि कार्य में ही लगाई जा सकती है । प्रश्न- २ : प्रतिक्रमण के सूत्रों के निमित्त घी बोला जाता है, उसकी उपज किस क्षेत्र में लगाई जाय ? उत्तर : प्रतिक्रमण सूत्र सम्बन्धी उपज ज्ञान खाते में, आगमादि (छपवाने) लिखवाने के कार्य में भी जा सकती हैं। प्रश्न- ३ : स्वप्नों के घी की उपज किस कार्य में ली जाय ? उत्तर : इस संबंध के अक्षर किसी शास्त्र में मुझे दृष्टिगोचर नहीं हुए लेकिन श्री सेन प्रश्न और हीरप्रश्न नाम के शास्त्र में उपधान माला पहनने का घी की उपज को द्रव द्रव्य में गिनी है। इसी शास्त्र के आधार देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३४

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70