Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 43
________________ १३. स्वप्नों की उपज देवद्रव्य में ही जाती है । प्रश्न ९ : स्वप्न उतारना, घी चढाना, फिर नीलाम करना और दो तीन रूपये मण बेचना, यह क्या भगवान् का घी सौदा है क्या ? वह लिखा । उत्तर ९ :- स्वप्न उतारना, घी बोलना इत्यादि धर्म की प्रभावना और जिनद्रव्य (देवद्रव्य) की वृद्धि का हेतु है। धर्म की प्रभावना करने से प्राणी तीर्थंकर नामकर्म बांधता है, यह कथन श्री जातासूत्र में है और जिनद्रव्य की वृद्धि करने वाला भी तीर्थंकर नामकर्म बांधता है, यह कथन भी संबोध सत्तरी शास्त्र में हैं। घी की बोलने के वास्ते लिखा है इसका उत्तर यह है कि जैसे तुम्हारे आचारांगादि शास्त्र भगवान की वाणी जो दो-चार रूपये में बिकती है ऐसे घी का भी मोल पड़ता है । प्रश्न १० :- माला नीलाम करनी, प्रतिमाजी की स्थापना करनी और भगवानजीका भंडार रखना कहाँ लिखा है ? उत्तर १० :- मालोद्घाटन करना, प्रतिमाजी स्थापना करनी तथा भगवानजी का भंडार रखना यह कथन 'श्राद्ध विधि' शास्त्र में है । ढुंढक हितशिक्षा 'अपर नाम गप्प दीपिका समीर । प्रगट कर्ता नाम - श्री जैन धर्म प्रचारक सभा' भावनगर । संवत १९४८ अहमदाबाद ( युनियन प्रीन्टींग प्रेस में प्रकाशित) लेखक मुनि वल्लभविजयजी * -- स्वप्ना की बोली प्रभु के च्यवन कल्याणक निमित्त होने से प्रभु निमित्त की ही बोली होने से इस बोली का द्रव्य भी देव-द्रव्य ही है । साधारण द्रव्य की उपज करने के लिए चार आना या आठ आना वगैरह स्वप्न की बोली के ऊपर जो सर्चार्ज लगाया जाता है और वह सर्चार्ज में आये धन को साधारण द्रव्य मानकर साधु आदि की भक्ति देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३८

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