Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 37
________________ १०, वडोदरा जैन संघ के पारित प्रस्ताव से भी स्वप्नाजी की बोली देवद्रव्य है का पुष्टिकररण ता. ३-१०-१९२० वडोदरा में श्री पयुषण पर्व में देवद्रव्य सम्बन्धी महेसाणा संघ की तरफ से आई हुई जाहिर विनंती के सम्बन्ध में प्रश्न उठने पर पं. श्री मोहनविजयजी (स्व. आ.भ. श्री. विजय मोहन सूरि म.) ने देवद्रव्य शास्त्राधारित आगमोक्त है इस विषय पर शास्त्रपाठों से दो घंटे तक व्याख्यान देकर मूल रिवाज को कायम रखने की सूचना की थी। अतः देवद्रव्य की आय के सम्बन्ध में चले आते रिवाज को शास्त्राधार के कारण अस्खलित रूप में चालू रखना। उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन न करना - यह टहराया जाता है । देव निमित्त बोली गई बोली देवद्रव्य है अतः किसी प्रकार का परिवर्तन न किया जाय । इतर को भी भलामण करने का प्रस्ताव किया गया । साथ ही छाणी में रहे हुए उनके शिष्य मु. प्रतापविजयजी (पू. आ. भ. श्री विजयप्रताप सूरि म. श्री) के नेतृत्व में भी वैसा ही प्रस्ताव हुआ था । (दैनिक पत्र' के समाचार से उद्धृत). (हिन्दी में अनुवादित) प देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३२ नाम

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