Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 34
________________ संबंधी किया गया महत्त्वपूर्ण निर्णय । ... १. देव-द्रव्य-जिन-चैत्य तथा जिन-मूर्ति के सिवाय अन्य किसी भी क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा सकता। २. प्रभु के मंदिर में या बहार किसी भी स्थान पर प्रभुजी के निमित्त जो जो बोलीया बोली जाती है वह सभी देव द्रव्य कहा जाता है। ३. उपधान संबंधी माला आदि की एवं देव द्रव्य में ही ले जाना उचित है। ४. श्रावको का अपने स्वयं के द्रव्य से प्रभु की पूजा आदि का लाभ लेना चाहिए किन्तु किसी स्थान में अन्य सामग्री के अभाव में प्रभु की पूजा आदि में विघ्न आता हो तो देवद्रव्य में से प्रभु पूजा आदि का प्रबंध करना चाहिए। लेकिन प्रभु की पूजा आदि तो अवश्य होनी ही चाहिए । ५. तीर्थ और मंदिरों के व्यवस्थापको को चाहिए कि तीर्थ और मंदिर संबंधी कार्य के लिए आवश्यक धन राशि रखकर शेष रकम से तीर्थोद्धार और जीर्णोद्धार तथा नूतन मंदिरों के लिए योग्य मदद देनी चाहिए ऐसी यह सम्मेलन भलामन करता है। . विजय नेमिसृरि, जयचंद्रसूरि, विजय सिद्धि सूरि, आनंद सागर ... विजय वल्लभसूरि, विजयदानसृरि, विजय नीतिसूरि, मुनि सागरचंद, विजय भूपेन्द्रसूरि अखिल भारतीय वर्षीय जैन श्वे. श्रमण सम्मेलन ने सर्वानुमति से शास्त्रीय पट्टक रुप नियम किये है । उसकी मूल कापी सेट आनन्दजीकल्याणजी जैन पेढी को सुपर्त की हैं। श्री राजनगर जैन संघ कस्तुरचंद, मणीलाल वंडावीला .. ता. १०-४-३४ वि. सं. १९७६, २००७, २०१४ के सम्मेलनो के निर्णय भी इसी प्रकार हैं। CH देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * २९ -

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