Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 32
________________ ७. स्वप्न द्रव्य देव द्रव्य ही है उसके अभिप्राय महेसाणा श्री सीमंधर स्वामी पेढी की तरफ से प्रकाशित हुई हैं, उसके पृष्ठ रूप से ३७ तक देवद्रव्य संबंधित अभिप्रायः देवद्रव्य मंदिर के अंदर या बहार किसी भी स्थान पर प्रभु की भक्ति निमित्ते जो कोई भी उपज : १. भंडार २. चढावे जैसे स्वप्नाजी, वरघोडा, उपधान की माला, तीर्थमाला, आरति मंगल दीपक पक्षाल विलेपन पूजन आदि ३. नाण, रथ, आंगी आदि में और उसमें मूर्ति स्थापन करवाने का नकरा ४. प्रभु भक्ति के लिए अर्पण की हुई वस्तुए या रकम ५. प्रतिष्ठा, भक्ति, स्नात्र महोत्सव, अंजनशलाका आदि के चढावे ६. मंदिरजी की जमीन की रकम ७. देवद्रव्य का जो व्याज आता है वो रकम उपरोक्त व्याख्या में जिन जिन बाबत का समावेश करने में आया हैं उन उन बाबत की आय अगर उपज का हवाला देवद्रव्य खाते में जमा करवाने का रखना चाहिए । देवद्रव्य का उपयोग :- जिन मूर्ति और जिन मंदिर के सिवाय किसी भी कार्य में उपयोग करना नहि । अर्थात् उनका उपयोग निम्न बताये हुए कार्यों में हो सकता है । १. प्रभु के आभूषण, चक्षु, टीका, लेप आंगी आदि करवाना २. मंदिर का जीर्णोद्धार रंग रोगान आदि करवाना ३. नूतन मंदिर बनवाना और दूसरे मंदिरो में सहायता करनी ४. ध्वज कलश, इंडा चढाना देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? २७

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