Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 31
________________ संभाल तथा देवद्रव्यादि की व्यवस्था सही ढंग से नहीं करते । जब मानसन्मानादि में बाधा खडी होने का प्रसंग उपस्थित होता है तब वे ट्रस्टी मंडल में गुटबन्द का वातावरण पैदा करके - खोटे झगड़े खड़े कर देते है। अन्न में जाकर ये खोटे झगडे संघ के संप को तोड़ कर रहते है उसके कारण कई लोग धर्म विमुख बन जाते है । ऐसे ट्रस्टी वर्ग में अरिहल परमात्मा तथा उनके शासन के प्रति श्रद्धा की कमी है। श्रद्धा – विहीन पैसेदार जब ट्रस्टी पद पर आरूढ होते है तब उनका अभिमान आसमान तक पहुंच जाता है । वे न तो जिनाजा मुताबिक संचालन कार्य करते है और न उसमें गीतार्थ गुरु भगवनों की राय लेते है ऐसे ट्रस्टी वर्ग देवद्रव्यादि - धर्मद्रव्य को अयोग्य स्थाना में लगाकर दुरुपयोग करके भयंकर पापों का बंध कर दर्गति के अधिकारी बनते है । अतः हरेक ट्रटी वर्ग महानुभावों को सूचन किया जाता है कि वे ट्रस्टीपद का मानसन्मानादि का पद न बनाकर सेवा का पद बनाये और श्री अरिहंत प्रमात्मा की आज्ञा को निगाह में रखकर समय समय पर आजा का पालन करके जिनमन्दिरादि धर्म-स्थानों का तथा देवद्रव्यादि धर्मद्रव्य का संचालन कार्य करें, जिससे अपनी आत्मा संसार सागर में नहीं डबे और दुरन्त दुःखदायी दुर्गतियों के गहरे खड्डे में नहीं गिरे। ___जैन पेढी के उत्तम संचालक सही तौर पर संचालन कार्य करके उत्तम कोटि का पुण्य लाभ उटावे इस हेतु से यह पुस्तक प्रकाशन कार्य है और यह पुस्तक ध्यान से पुनः पुनः पढकर जिनाजा मुताबिक समस्त ट्रस्टी-वर्ग संचालन कार्य सही ढंग से करे यही हमारी शुभ अभिलाषा है। देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * २६ ) -

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