Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 25
________________ ७. श्रावक परिग्रह का विष के निवारण के लिये भगवान् की द्रव्य-पूजा करे ! आज इतने सारे जैनों के जीवित होते हुए भी और उसमें समृद्धिशाली जैनों के होने पर भी एक आवाज ऐसी भी चल पडी है कि - ‘इन मन्दिरों की रक्षा कौन करेगा ? कौन इन्हें सम्भालेगा ? भगवान की पूजा के लिए केसर आदि कहाँ से लावें ? अपनी कही जाने वाली भगवान् की पूजा में भी देवद्रव्य का उपयोग क्यों न हो ? इससे आजकल ऐसा प्रचार भी चल रहा है कि - भगवान् की पूजा में देवद्रव्य का उपयोग शुरु करो।' कहीं कहीं तो ऐसे लेख भी छपने लगे हैं कि - मन्दिर की आय में से पूजा की व्यवस्था करनी ! ऐसा जब पढ़ते हैं या सुनते हैं तब ऐसा लगता है कि क्या जैन समाप्त हो गये हैं ? देवद्रव्य पर सरकार की नीयत बिगडी है, ऐसा कहा जाता है, परन्तु आज ऐसी बातें चल रही है जिससे लगता है कि देवद्रव्य पर जैनों की नीयत भी बिगडी है । नहीं तो, भक्ति स्वयं को करनी है और उसमें देवद्रव्य काम में लेना है, यह कैसे हो सकता है ? आपत्तिकाल में देवद्रव्य में से भगवान की पूजा करवाई जाय, यह बात अलग है और श्रावकों को पूजा करने की सुविधा देवद्रव्य में से दी जाय, यह बात अलग है । जैन क्या ऐसे गरीब हो गये हैं कि अपने द्रव्य से भगवान की पूजा नहीं कर सकते ? और इसलिये देवद्रव्य में से उनको भगवान की पूजा करवानी है ? जैनों के हृदय में तो यही बात होनी चाहिये कि 'मेरे द्रव्य से ही भगवान् की द्रव्यपूजा करनी है।' देवद्रव्य की बात तो दूर रही, परन्तु अन्य श्रावक के द्रव्य से भी पूजा करने का कहा जाय तो जैन कहते कि - ‘उसके द्रव्य से हम पूजा करें तो उसमें हमें क्या लाभ ? हमें तो हमारी सामग्री से पूजाभक्ति करनी है ! देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो? * २० मा

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