Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha View full book textPage 5
________________ 9: विषयानुक्रम सात क्षेत्रों आदि की व्याख्या तथा उनके द्रव्यकी व्यवस्था के बारेमें शास्त्रीय मार्गदर्शन : २. देव-द्रव्यादि की बोली बोलने वाले के कर्त्तव्य ३. ट्रस्टियों के कर्तव्य 8. ५. ७. ८. : एक कोथली से व्यवस्था दोषित हैं । श्रावक परिग्रह का विष के निवारण के लिये भगवान् की द्रव्य - पूजा करे ! ६. देवद्रव्य की सुरक्षा तथा सदुपयोग करना चाहिये न कि उसका दुरुपयोग और बेदरकारी स्वप्न द्रव्य देव द्रव्य ही है उसके अभिप्राय आ. श्री प्रेमसूरिजी म. देवद्रव्य को मंदिर - साधारण में जाने का आक्षेप मिथ्या है । ९. पू. मुनिराज श्री धर्मविजयजी म. ( आ.भ. श्री. वि. धर्मसूरिजी म. ) भी स्वप्नाजी की बोली देवद्रव्य स्वीकारते थे । उन्ही के पत्र द्वारा स्पष्टीकरण १०. वडोदरा जैन संघ के पारित प्रस्ताव से भी स्वप्नाजी की बोली देवद्रव्य है उस का पुष्टिकररण ११. शास्त्र के अनुसार स्वप्न बोली की आवक देवद्रव्य ही है / १२. आ. श्री वि. वल्लभसूरिजीभी ने पुरुषों की सभा मे साध्वीजी के व्याख्यान के विरोधी थे एवं स्वप्न द्रव्य को देव-द्रव्य ही माना है / १३. क्लीन एडवांस (Clean Advance) कदापि नहीं देना १४. देवद्रव्येन या वृद्धिर्गुरु - द्रव्येन यद्धनं तद्धनं कुलनाशाय मृतोपि नरकं व्रजेत् १५. देवद्रव्यादि सात क्षेत्रो की व्यवस्था का अधिकारी कौन ? (४)Page Navigation
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