Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho
Author(s): Kamalratnasuri
Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha

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Page 4
________________ दो शब्द प्रायः देखा जाता है कि कई क्षेत्रो में प्रायः करके देवद्रव्यादि की जानकारी न होने से देवद्रव्यादि का दुरुपयोग किया जाता है । देवद्रव्यादि की रकम चढावा बोलकर अपने पास कम व्याज से रखते है और देवद्रव्यादि में से पूजारी को वेतन आदि देना, केशर चंदन धूपादि का स्वयं उपयोग करना । कई जगह तो एक ही कोथली रखी जाती है। भंडार, चावल, नारियल, पैसे स्नात्रपूजा का नारियल आदि पूजारी को देना जिससे अपने को पगार देना नहीं पडे या कम देना पडे । प्रभु की पूजा अपने को अपने लाभ के लिए करने की है न कि भगवान के लिए। पूजा अपने को करनी है परंतु हमारे पास समय नहीं होने से हमने पुजारी रखा है तो उसको वेतन आदि सुविधाएं.देवद्रव्य से नहीं दे सकते यदि देवद्रव्य से देते है तो दोष के भागी होते है। अपन ने लाभ लेने के बाद फिर वह द्रव्य स्वयं के उपयोग में कैसे आ सकता हैं ? अगर ऐसा होता है तो श्रावकों को देवद्रव्य के भक्षण का दोष लगता है । यह सब अज्ञानता है या फिर कंजूसी के कारण ऐसा होता है। श्रावकों को देवद्रव्यादि भक्षण का दोष न लगे इस उद्देश्य से यह हमारा प्रयास है । जो व्यक्ति यह पुस्तक ध्यान से पढेगा वह जरूर सही जानकारी प्राप्त करेगा, ऐसी आशा रखता हूं। यह पुस्तक द्रव्यसप्ततिका शास्त्रों आदि के आधार से लिखी है। शास्त्र विरुद्ध लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडं। वि. सं. २०५२ महावद १३ श्री जैन उपाश्रय, तीखी (राजस्थान) पू. गणिवर्यश्री कमलरत्नविजय म.

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