Book Title: Devdravyadi Ka Sanchalan Kaise Ho Author(s): Kamalratnasuri Publisher: Adhyatmik Prakashan Samstha View full book textPage 8
________________ योग्य साहित्य भी खरीद सकते हैं । जैन अखबार छपाने आदि में इस द्रव्य का उपयोग नहीं कर सकते । ____ ज्ञानभंडार के लिये धार्मिक पुस्तक ला सकते है। ये पैसे जैन पंडित को नहीं दे सकते । इन पैसों से जैन पुस्तक-विक्रेता के यहां से पुस्तक नहीं खरीद सकते । यदि जैन पंडितों को कुछ भी देना पडे अथवा तो जैन पुस्तक विक्रेता के यहां से पुस्तकादि खरीदना पडे तो यह राशि श्रावक अपने स्वयं के पास से देखें । ज्ञानभंडार के ग्रंथ पुस्तकादि का उपयोग श्रावक अथवा श्राविका करे तो उसका योग्य नकरा (चार्ज) देकर ही करें । ज्ञानद्रव्यसे धार्मिक प्राचीन या अर्वाचीन शास्त्र लिखने या छपाने के लिए तथा उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी सामग्री लाने के लिए खर्च कर सकते हैं । इस द्रव्यसे ज्ञानभंडार के लिए ज्ञानमंदिरभी बंधवा सकते हैं। परंतु ज्ञानद्रव्यसे बने हुए ज्ञानमंदिरमें साधु-साध्वी या पौषार्थी श्रावकश्राविका नहीं रह सकते । संथारा आदि भी नहीं कर सकते । यह क्षेत्रभी (ज्ञानद्रव्य) देवद्रव्य तुल्य ही पवित्र होने से साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका खुद के उपयोग में यह द्रव्य उपयोग नहीं कर सकते । व्यावहारिक शिक्षा में इस द्रव्य का बिल्कुल उपयोग हो नहीं सकता। पाठशालामें अभ्यास कर रहें बालक बालिकाओं के लिए धार्मिक पुस्तकें भी इस द्रव्यसे ला नहीं सकते। धार्मिक शिक्षण खाता (पाठशाला) :- यह खाता साधर्मिक श्रावक-श्राविका की ज्ञानभक्ति का साधारण खाता है । यदि श्रावकश्राविकाने अपना खुद का द्रव्य खुद के धार्मिक अभ्यास के लिए अर्पण किया हो तो उस रकमसे श्रावक पंडित रख सकते हैं । जिसका लाभ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चारों वर्ग ले सकते हैं । धार्मिक पुस्तक तथा इनाम आदि भी इसमें से दे सकते हैं। परंतु यह पैसे व्यावहारिक देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ३Page Navigation
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