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शिक्षणमें किसीभी रूप में इग्नमाल कर नहीं सकते यह बात खास ध्यानमें रखनी चाहिए।
४-५. साधु-साध्वी क्षेत्र :- संयमधारी साधु-साध्वी महाराज की भक्ति - वैयावच्च के लिए जो रकम दानवीरों की ओर से मिली हो तो उसका उपयोग संयमधारी साधु-सायीजी महाराज की संयम- शुश्रूषा तथा विहार आदि की अनुकूलता के लिए खर्च कर सकते है । नूतन दीक्षित बनने वाले मुमुक्षु को उपकरण अर्पण करने की बोली में से नवकारवाली (माला), पुस्तक तथा सापडे की बोली की रकम ज्ञानखातेमें जाती हैं। बाकी उपकरणों की बोली की रकम साधु-साध्वीजी महाराज के वैयावच्च खाते में जाती है । इस क्षेत्र का द्रव्य जरूरत पड़ने पर ऊपर के तीनों क्षेत्रमें श्री संघकी आज्ञानुसार खर्च सकते हैं। परंतु नीचे के श्रावक-श्राविका क्षेत्रमें इस द्रव्य का उपयोग हो नहीं सकता। सर्वसामायिक उच्चरने के बाद नूतन-साधु का नृतन नाम जाहिर करने की बोली तो देवद्रव्य में जाती है। ...
६-७. श्रावक श्राविका क्षेत्र :- भक्तिभावसे इस क्षेत्रमें समर्पण किया.जो द्रव्य वह श्रावक-श्राविकाओं को धर्ममें स्थिर करने के लिए, आपत्ति के समयमें सहायता करने के लिए अथवा हर एक प्रकार की भक्ति के कार्य में इस द्रव्य का उपयोग हो सकता हैं। क्योंकि यह द्रव्य ४थे-पांच-वें गुणस्थानक में रहे हुए आत्माओं की भक्ति के लिए है। यह पवित्र साधर्मिक द्रव्य है । इसीलिए चेरिटी, सामान्य जनता, याचक, दीनदुःखी अथवा तो अन्य किसीभी मानव के लिए तथा दया-अनुकंपा आदि तथा व्यावहारिक कार्योंमें यह द्रव्य बिल्कुल इस्तेमाल नहीं कर सकते । इस द्रव्य का जरूरत पड़ने पर ऊपर के पांचो क्षेत्रमें श्री संघ की आज्ञानुसार खर्च सकते हैं । परंतु नीचे के अनुकंपा या जीवदया में
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ४