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प्राण : एक व्यावहारिक विश्लेषण
तीन अनिवार्यताएं बहुत समय पहले मैंने एक दोहा सुना था
मोहन पास गरीब के, को आवत को जात ।
एक बिचारो सांस है, आत-जात दिन रात । गरीब के पास और तो कोई नहीं आता-जाता, बस एक बेचारा सांस ही है, जो नियमित रूप से आता-जाता रहता है। यहां सांस को बेचारा कहा गया है। साधारण लोग इसे बेचारा ही समझते हैं। इसीलिए इसका कभी कोई मूल्यांकन भी नहीं किया जाता। इसे बेचारा समझना एक भूल है। यह तो हमारे शरीरधारण का प्रमुख आधार है, इसे समझना बहुत आवश्यक है।
हमारा यह शरीर साधना का मूल आधार है, क्योंकि हमारी समस्त क्रियाओंप्रतिक्रियाओं का वाहक यही है । इस शरीर को अस्तित्व में रखने के लिए तीन वस्तुएं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, उन्हें अनिवार्य एवं अपरिहार्य कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी, वे हैं--भोजन, जल और श्वास ।
श्वास : अस्तित्व का द्योतक भोजन बहुत स्थूल वस्तु है । उसके बिना व्यक्ति अनेक महीनों का लम्बा समय निकाल सकता है। इसी प्रकार भोजन के साथ-साथ जल का भी परित्याग करके अनेक दिन निकाले जा सकते हैं। तेरापंथ धर्मसंघ की एक सदस्या साध्वीश्री जेठांजी ने अन्न-जल ग्रहण किये बिना बाईस दिन निकाल दिए थे। सन् १९६० में साध्वी गुलाबांजी ने अन्न-जल त्याग का २८ दिनों का कीर्तिमान स्थापित किया। परन्तु श्वास के बिना तो व्यक्ति अपने शरीर को इतने मिनट भी कायम नहीं रख सकता। श्वास हमारे जीवन के अस्तित्व का द्योतक है । जब व्यक्ति मरण शैया पर होता है तब उसके नाक के सामने रूई का पतला-सा फाहा रखा जाता है, ताकि यह जाना जा सके कि व्यक्ति जीवित है या मृत । यदि जरा-सी भी श्वास की क्रिया चल
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