Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 197
________________ शक्ति-स्वरूपा जैन साध्वियां १८७ अनुशासन की भावना जगाना तथा चालू व्यवस्था को बदलकर दूसरी करना- ये दोनों ही बड़े कठिन कार्य हैं, परन्तु सरदार सती ने बड़ी निपुणता के साथ उन्हें कर दिखाया। साध्वी-प्रमुखा बनने के पश्चात् सरदार सती ने सभी चातुर्मास जयाचार्य के साथ ही किये । सभी व्यक्तियों के प्रति उनका दृष्टिकोण अत्यंत शालीन और वात्सल्य भरा रहता था, अतः लोग उनका माता के समान आदर करते थे। सं० १९२७ में कुछ दिन की अस्वस्थता के पश्चात् वे पोषशुक्ला ८ को अनशन-पूर्वक दिवंगत हो गई। २. गुलाब सतो विदुषी साध्वी महासती गुलाबकुंवरजी एक विदुषी साध्वी थीं। बीदासर (राजस्थान) के पूर्णमलजी बेगवाणी के घर सं० १६०१ में उनका जन्म हुआ। पंचमाचार्य मघवागणी की वे सगी छोटी बहन थीं। बाल्यावस्था में ही जयाचार्य के पास दीक्षित होकर गंभीर आगम-ज्ञान अर्जित किया । मधुर कंठ और सरस व्याख्यान के लिए वे सर्वत्र प्रसिद्ध थीं। वे सदैव जयाचार्य एवं मघवागणी के साथ ही विहार करती रहीं। मध्याह्न का व्याख्यान बहुधा वे ही दिया करती थीं । अनेक बार विहार करते समय गांवों में राजपरिवार के गढ़ों में ठहरने के भी अवसर आते रहते थे। वहां रनिवास की महिलाओं तथा ठाकुरों को भी उनका व्याख्यान सुनने का अवसर मिलता। वे बहुत प्रभावित होते । कोई उन्हें शक्ति का अवतार बतलाता तो कोई सरस्वती का। गणेश का अवतार गुलाबसती हस्तलेखन में बड़ी निपुण थीं। उनके अक्षर बहुत सुन्दर थे। उनकी लिखी हुई आगमों तथा ग्रंथों की अनेक प्रतियां आज भी धर्म संघ के भंडार की शोभा बढ़ा रही हैं। उनके द्वारा लिपिबद्ध किये गये ग्रंथों का पद्यमान लगभग डेढ लाख है। अपने युग में इतना सुन्दर और इतना अधिक लिखने वाली वे प्रथम साध्वी थीं। ____ जयाचार्य ने सर्वाधिक बृहत् जैनागम भगवती की पद्यबद्ध टीका (जोड़) की। उसे लिखने का कार्य गुलाब सती ने संभाला । जयाचार्य पद्य बनाते जाते वे लिखती जातीं । ग्रंथनिर्माण की दृष्टि से यदि जयाचार्य की तुलना महर्षि व्यास से की जाए तो गुलाबसती को गणेश का अवतार कहना अत्युक्ति नहीं होगी। एक बार सुन लेने के पश्चात् वे प्रायः दुबारा नहीं पूछा करती थीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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