Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 225
________________ अणुव्रती 'अमन' २१५ विचार था कि अमनजी को साथ चलना चाहिए, परन्तु वे तैयार नहीं हो रहे थे। लोगों ने मुझे कहा कि आप थोड़ा-सा प्रेरित कर दें तो वे तैयार हो जाएंगे। मीटिंग से उठकर जब वे मेरे पास आए तो मैंने पूछ लिया--"कौन-कौन जा रहे हैं ?" उन्होंने अन्यों के तो नाम बतलाए पर अपना नाम नहीं लिया। मैंने कहा- "आप तो यहां की समिति के अध्यक्ष हैं । आपके नेतृत्व में अधिवेशन में भाग लेना लोगों को अधिक प्रेरक बनता हो तो आपको सोचना ही चाहिए।" अमनजी ने कहा--"प्रत्येक अधिवेशन में भाग लेने की मेरी स्वयं की इच्छा होती है, परन्तु मैं इन दिनों कुछ निराश हो गया हूं, अतः इस बार माफी चाहूंगा।" मैंने साश्चर्य उनकी ओर देखा तथा पूछा-"आप यहां के कार्यकर्ताओं से निराश हो गए हैं या अणुव्रत आन्दोलन से?" ___ वे बोले- “नहीं-नहीं, यहां के कार्यकर्ताओं तथा आन्दोलन से मुझे कोई निराशा नहीं है । मेरी निराशा का कारण तो समाज की स्थितियां हैं।" मैंने कहा- "तब तो आपका अधिवेशन में सम्मिलित होना अत्यन्त आवश्यक है। समाज की स्थितियों के सुधार के लिए ही तो अणुव्रत आन्दोलन का प्रयास है। आचार्यश्री के पास जाने पर अवश्य ही आप आशा से भर उठेंगे ।" मेरे उस कथन से उन्होंने अधिवेशन में सम्मिलित होने का निर्णय कर लिया। अधिवेशन से लौटकर जब वे दिल्ली आए तो आशा से भरे हुए थे । मैंने जब पूछा कि आपकी निराशा के क्या हालचाल हैं ? तो वे हंस पड़े। उन्होंने मुझे बतलाया--"अभी कुछ दिन पूर्व दिल्ली नगर निगम के चुनाव थे । मेरी पार्टी वालों ने मेरे ही मोहल्ले में वोट खरीदे। यह कार्य मेरे से छिपाकर किया गया। मुझे ऐसी प्रच्छन्न अनैतिकताओं से अत्यन्त ग्लानि है । मैंने उस दिन आपसे जो निराशा की बात कही थी उसके मूल में समाज के नेताओं की यही अनैतिक स्थिति रही थी। आपके कथन को टालना नहीं चाहता था, अतः अधिवेशन में मैं गया तो सही परन्तु उक्त निराशा की भावना से घिरा हुआ ही गया था।" अमनजी ने बतलाया कि वार्तालाप के सिलसिले में आचार्यश्री के सम्मुख भी उन्होंने अपनी मानसिक दुविधा रखी। उन्होंने आचार्यश्री से कहा--"जब देश में इस प्रकार की अनैतिकता व्याप्त हो, तब कुछ एक व्यक्तियों का अणुव्रती बनना कोई प्रभावशाली नहीं हो सकता । मुझे अपनी प्रभावहीनता पर सर्वाधिक दुःख है कि मेरी पार्टी वालों पर भी मेरा कोई प्रभाव नहीं है। अधिक व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली भ्रष्टाचारिता के साथ जो सम्मिलित होना नहीं चाहता, उसे समाज के अन्य व्यक्तियों से अलगथलग रहना पड़ता है। उसका जीवन जाति बहिष्कृत जैसा बन जाता है। मेरे साथी अब यह जान गए कि मैं उनके अनैतिक कार्यों में सहयोग नहीं दूंगा तो वे उन विषयों में मुझसे विमर्श किए बिना ही अपना निर्णय कर लेते हैं। अब आप ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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