Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 204
________________ १९४ चिन्तन के क्षितिज पर बतलाई । सभी ने सोच-विचार कर एक मत से यह नियम बनाया कि जयपुर की हंडी का भुगतान तीन दिनों में तथा बाहर की हुंडी का भुगतान इक्कीस दिनों में कर दिया जाये । यह नियम बन जाने पर व्यापारियों को काफी सुविधा हो गई। हरचन्दलालजी धनिक होने के साथ-साथ धार्मिक भी उच्चकोटि के थे। उन्होंने जयपुर क्षेत्र में धार्मिक प्रचार-प्रसार का काफी प्रयास किया। उनके सम्पर्क से सैकड़ों व्यक्ति तेरापंथी बने । उनकी अगली अनेक पीढ़ियों ने भी यथावत अपना दायित्व निभाया। सं० १८६६ में उनकी हवेली में प्रथम चातुर्मास हआ तब से कुछ अपवादों को छोड़कर सं० २००६ तक प्रायः वहीं चातुर्मास होते रहे। इतने लम्बे समय तक ‘शय्यातर' का लाभ विरल व्यक्ति ही ले पाते हैं। २. महेशदासजी मूथा महेशदासजी मूथा मूलतः किशनगढ़ के थे, परन्तु बाद में जयपुर निवासी हो गये। सं० १८६६ के ग्रीष्मकाल में आचार्य भारमलजी किशनगढ़ पधारे तब वे तेरापंथ के विरोधी थे, कट्टर स्थानकवासी श्रावक थे। वहां शास्त्रार्थ का निश्चय हुआ। जब शास्त्रार्थ में निरुत्तर हो गये तब पहले से बनाई व्यवस्था के अनुसार हल्ला मचा दिया गया कि तेरापंथी हार गये। सभा विसर्जित हो गयी। वहां कोई तेरापंथ का घर नहीं था, अतः कोई प्रत्युत्तर करने वाला भी नहीं था। कालान्तर में महेशदासजी तेरापंथी बन गये तब उन्होंने यह भेद स्वयं ही खोला कि हल्ला मचवाने में उन्हीं का मुख्य हाथ था। उन्होंने अपनी एक गीतिका में भी इस बात को स्पष्ट किया है ___ रुपया दीया पांच, ते तो किम बोले सांच । मुनि हेमराजजी ने सं० १८६६ का चातुर्मास किशनगढ़ में किया । प्रारम्भ में वहां कोई तेरापंथी नहीं था, परन्तु चातुर्मास की समाप्ति तक अनेक व्यक्ति तेरापंथी बने । महेशदासजी भी उनमें से एक थे। उनकी पत्नी सं० १८७७ के बाद तेरापंथी बनी । महेशदासजी ने उन्हें समझाने के लिए सं० १८७७ में 'गुरुओलखावण' नाम से एक गीतिका बनाई । उसमें उन्होंने तेरापंथी की वेशभूषा से लेकर आचार-विचार तक की बातों से उन्हें अवगत कराया। श्रद्धा ग्रहण करने के पश्चात वे भी उन जैसी ही पक्की हो गयी। महेशदासजी ने पांचों व्यक्तियों को श्रद्धाशील बनाया। वे एक कवि हृदय व्यक्ति थे। उनकी अनेक गीतिकाएं काफी प्रसिद्ध हुई। कुछ तो आज भी अनेक व्यक्तियों के मुखस्थ मिलती हैं, जैसे—'आज रो दिहाडो जी भलाई सूरज ऊगियो', 'भेंट भविशरण ले चरण भिक्षु तणो' तथा 'वे गुरु म्हारा थे कर ल्योनी थांहरा' आदि । पीपाड़ के समदड़िया परिवार के पास हस्तलिखित पोथे में उनकी अनेक ढालें संकलित मिलती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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