Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 208
________________ १९८ चिन्तन के क्षितिज पर बनायी गयी सड़क के किनारे जयाचार्य की छत्री अब भी अपनी महत्ता का इतिहास कह रही है। ७. छोगमलजी बांठिया छोगमलजी भागचन्दजी बांठिया के पुत्र थे। जयपुर के तत्कालीन प्रधानमंत्री हाथी बाबूजी के साथ भागचन्दजी की प्रगाढ़ मित्रता थी। उन्हीं की प्रेरणा से वे सं० १६०० के आसपास चूरू से आकर जयपुर में बस गये और व्यवसाय करने लगे। पुत्र छोगमलजी ने व्यवसाय का मार्ग न अपना कर राज्य सेवा अपनायी। यहां से जकात महकमे के हाकिम बन गये । राज्य के तत्कालीन वित्तमंत्री मोतीलालजी अटल उनके घनिष्ठ मित्र थे। किसी भी विशिष्ट कार्य से पूर्व वे दोनों परस्पर परामर्श अवश्य कर लिया करते थे। छोगमलजी के कोई पुत्र नहीं था, अतः अपने छोटे भाई के पुत्र सूरजमलजी को गोद ले लिया। उन्होंने उनको व्यवसाय में स्थापित किया। पुत्र ने ज्यों-ज्यों घर का भार सम्भाला, छोगमलजी अधिकाधिक धार्मिक कार्यों में समय लगाने लगे। वे ऋषिराय और जयाचार्य के समय में एक प्रमुख श्रावक थे। वे दिवंगत हुए उस समय सींधड़ों की हवेली में साध्वी रायकंवरजी विराज रही थीं। वे सं० १९४४ से ५२ तक कारणवश वहां रही थी। छोगमलजी ने बड़े प्रभावक ढंग से उनके दर्शन किये । मृत्यु के कुछ समय पश्चात् अर्द्ध रात्रि के समय पूरे मकान में विचित्र प्रकार का एक प्रकाश फैल गया। सींधड़ परिवार के गणेशलालजी, चम्पालालजी तथा उनकी पत्नियों ने उस दृश्य को प्रत्यक्ष देखा था। उनका कथन था कि प्रकाश और सर-सर जैसी ध्वनि से मकान मानो भर गया। फिर एक तेज ज्योतिपिंड नीचे उतरा और साध्वीश्री को वंदन किया। साध्वीजी ने बोली पहचान कर पूछा-कौन, छोगमलजी ? उत्तर मिला-हां महाराज ! और फिर वह ज्योतिपिंड, प्रकाश और सर-सर की ध्वनि सब अन्तर्धान हो गये। ८. सूरजमलजी बांठिया सूरजमलजी बांठिया छोगमलजी के छोटे भाई बींजराजजी के पुत्र थे । छोगमलजी के गोद गये थे। वे एक कुशल व्यापारी होने के साथ-साथ अच्छे धार्मिक भी थे। श्रावक जनोचित सामान्य प्रत्याख्यानों के अतिरिक्त उनको अनेक विशेष प्रत्याख्यान भी थे । वे छाता लगाने, पंखे आदि से हवा लेने तक का त्याग रखते थे। सामाजिक कार्यों में भी वे जागरूक थे। उन्होंने संवत् १९७० में एक पाठशाला प्रारम्भ की। उसमें बालकों को धार्मिक एवं संस्कृत विद्या पढ़ायी जाती थी। कालान्तर में वहां हिन्दी, अंग्रेजी तथा गणित आदि विषय भी पढ़ाये जाने लगे। प्रारम्भ में उसका अर्थभार बांठियाजी ने ही वहन किया। कालान्तर में उसे राज्य के शिक्षा विभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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