Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 192
________________ शक्ति स्वरूपा जैन साध्वियां नारी जाति को शक्ति का अवतार कहा जाता है, वह उचित ही है, क्योंकि सहिष्णुता के क्षेत्र में वह अद्वितीय रही है । उसके सामर्थ्य की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है । मैं यहां कुछ ऐसी जैन साध्वियों के उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं जिनकी सात्विक शक्ति ने उनके अपने कल्याण का मार्ग तो प्रशस्त किया ही, साथ ही जन-जीवन के लिए भी मार्ग प्रस्तुत किया । कष्ट सहिष्णुता, कार्य कुशलता, भक्ति-प्रवणता आदि अनेक ऐसी विशेषताएं हैं, जो अपनी परिपूर्ण उच्चता में प्रायः क्वचित् ही प्रकट होती हैं । विभिन्न साध्वियों में उनमें से एक या अनेक का सहज अवलोकन किया जा सकता है । सर्व प्रथम यहां सरदार सती के विषय में बतलाया जा रहा है। उनमें उपर्युक्त तीनों ही विशेषताएं अपनी अनुपम छटा लिये हुए थीं । १. सरदारसती प्रारंभिक जीवन सरदारसती चूरू (राजस्थान) के जैतरूपजी कोठारी की पुत्री थीं । उनका जन्म वि० सं० १८६५ में हुआ । तत्कालीन प्रथा के अनुसार मात्र दस वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह फलौदी के सेठ सुलतानमलजी ढड्ढा के पुत्र जोरावरमलजी के साथ कर दिया गया। छह महीने भी नहीं हो पाये थे कि उनके पति का देहान्त हो गया । वे विवाहिता होकर भी अखंडशीला ही रहीं। थोड़ी बड़ी होने पर जब अपनी स्थिति को समझने लगीं तभी से सादगी और संयम उनके जीवन का ध्येय बन गया । Jain Education International धार्मिक रंग थली में तेरापंथ का प्रचार-प्रसार करने के लिए सर्व प्रथम ऋषिराय महाराज का पदार्पण हुआ । सरदारबाई भी तब उनके सम्पर्क में आयीं । उसी वर्ष (सं० १८८७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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