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१८० चिन्तन के क्षितिज पर
क्रमों की ओर हमारे कदम बढ़ते रहे। हम परस्पर एक-दूसरे की रचना को देखते और उसके गुण-दोषों पर चर्चा करते। इन विषयों की स्पर्धा ने हमें बहुत त्वरता से आगे बढ़ाया। शीघ्र ही हम शैक्ष मुनियों को व्याकरण, काव्य और दर्शन शास्त्र आदि अनेक विषयों का प्रशिक्षण देने का कार्य भी करने लगे।
परिहास के क्षणों में समय-समय पर हम दोनों में परिहास भी चलता रहता था। एक बार मुनि नथमलजी ने किसी विषय पर मुझे कोई सुझाव दिया। मैंने उसे अस्वीकार करते हुए उनका मजाक उड़ाया कि मैं आपसे आयु में दस दिन बड़ा हूं, अतः मुझे शिक्षा देने का आपको कोई अधिकार नहीं है । उन्होंने भी मुझे उसी लहजे में तत्काल उत्तर दिया कि तुम दस दिनों के घमण्ड में फ़ले हो, मैं दीक्षा में तुम्हारे से नौ महीने बड़ा हूं।
__ एक बार मैंने उनको कोई सुझाव दिया तो उसका मजाक उड़ाते हुए उन्होंने मुझसे कहा- "तुम्हारा तो नाम ही 'बुद्धू' है, तुम मुझे क्या सुझाव दे सकते हो !" मैंने भी 'जैसे को तैसा' उत्तर देते हुए कहा- "मैं समझदार व्यक्ति के कथन को ही महत्त्व देता हूं। 'ऐरे गैरे नत्थू खैरे' मेरे विषय में क्या कहते हैं, उस पर कभी ध्यान नहीं देता।"
जो आज भी याद है आक्षेपात्मक परिहास प्रायः कटुता उत्पन्न कर देते हैं जबकि गुदगुदाने वाले परिहास तृप्तिदायक होते हैं । वे बहुधा अपनी स्मृति में भी वैसी ही तृप्ति प्रदान करते हैं। मेरे द्वारा किया गया एक परिहास, जिसे मैं भूल चुका था, परन्तु युवाचार्यजी को आज भी वह याद है । इसका पता मुझे तब लगा जब युवाचार्य बनने से तीन-चार दिन पूर्व ही बातचीत के सिलसिले में उन्होंने मुझे उस घटना का स्मरण कराया। उक्त घटना सं० २००१ के ग्रीष्मकाल की है। उस समय वे कुछ मास का प्रथम बहिविहार करके वापस आये थे । बाईस वर्ष की चढ़ती अवस्था और निश्चित एवं स्वतंत्र विहरण ने उनके शरीर पर काफी अच्छा प्रभाव डाला। रक्ताभ मुख उनकी स्वस्थता का अग्रिम परिचय दे रहा था। मैंने उनको वन्दन किया और परिहासमय प्राचीन श्लोक का एक चरण सुनाते हुए उसी के माध्यम से उन्हें सुखपृच्छा की। स्थित्यनुकूल सटीक बैठने वाला अपना परिहास सुनकर वे खिलखिला पड़े । अभी अभी राजलदेसर में युवाचार्य बनने से पूर्व उन्होंने मुझे मेरी परिहास-प्रकृति का स्मरण दिलाते हुए वही चरण गुनगुना कर कहा-"क्या तुम्हें याद है कि तुमने मेरे लिए इसका प्रयोग किया था।" लगभग पैंतीस वर्ष पूर्व किए गए उस परिहास को याद कर हम दोनों एक बार फिर खिलखिला कर हंस पड़े। साथ के साधु
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