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आज के परिप्रेक्ष्य में 'अहिंसा' ८७
दिखा रहा है । आवश्यक है सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र। विशुद्ध दृष्टि, विशुद्ध बोध और विशुद्ध आचरण । महावीर ने तो इसे जीव की मूक्ति का मार्ग बताया। पर सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी व्यक्ति-व्यक्ति की स्वतंत्रता भी इसके बिना संभव नहीं।
, आज के परिप्रेक्ष्य की क्या कहें, अभी इसी क्षण में गहराई से चिंतन करें। क्या मनुष्य समाज अहिंसा के बिना टिक सकता है ? कहीं थोड़ी भी हलचल होती है तो सारा विश्व जुट जाता है, शांति प्रयासों की दिशा में। आज जो यह प्रश्न करते हैं कि क्या किया है अहिंसा ने ? उनसे मेरा प्रतिप्रश्न है, क्या किया है 'हिंसा' ने ? यही न कि मनुष्य के कुछ भाग को समाप्त किया। कुछ समय तांडव किया। इन्सान को जानवर बनाया और फिर लौटकर वही अहिंसा की शरण में आया। ___ अध्यात्म की ऊंचाइयां भी अहिंसा से ही मिलती हैं। दूसरी ओर संसार का अस्तित्व भी इसी से है।
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