________________
चतुर्विंशति जिनस्तवन:
चकोरन नेहा | मधुकर केतकी दलमन प्यारी । जनम जनम प्रभु पास जिनेसर । वसो मन मेरे जगति तिहारी ॥ मूणा६॥ अश्वसेन वामा के नंदन | चंदन सम प्रभु तप्त बुजारी | निज आतम अनुजव रस दीजो | कीजो पलक में तनु संसारी ॥ मू० ॥ ७ ॥
इति श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवनम् ॥ २३ ॥
३
श्री महावीर जिनस्तवन । गीत की देशी ॥
नवदधि पार उतारणी जिनवर की वाणी । प्यारी हे अमृत रस केल । नीकी है जिनवर की वाणी ॥ जरम मिथ्यात निवारियो । जि० ॥ दीधो हे अनुजंव रस मेल | प्यारी है जि० ॥ १ ॥ इमं सरिखा अति दीन ने । जि० । डूखम हे अतिघोर अंधार । प्या० । जि० । ज्ञान प्रदीप जगावीयो । जि० । पाम्या है अतिमारंग
4