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१४ श्री मषीरविजयोपाध्याय कृत,
आणी महेर जवोदधि तारिये हो राज ॥ जा ॥ सा ॥ ८ ॥ श्रातम लक्ष्मी दिजिये हो राज || सा ॥ वीरविजयने श्राज काज सरे माहरो हो राज ॥ का ॥ सा ॥ ए ॥ इति राणकपुरस्तवन समाप्तं ॥ ॥ अथ श्री गीरनारमंडण नेमनाथ जिन स्तवन ॥
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में आजे दरिस पाया श्री नेमनाथ जिनराया ॥ मे ॥ कणी ॥ प्रभु शीवा - देवीना जाया प्रभु समुद्रविजय कुल श्रया करमोके फंद बोमाया ब्रह्मचारिं नाम धराया जिने तोडी जगतकी माया ॥ जि ॥ मे ॥ १ ॥ रेवत गिरी मंरुण राया कल्याणक - तिन सोहाया दिक्षा केवल शीवराया जगतारक बिरुदधराया तुम बेठे ध्यान लगाया ॥ तु ॥ मे ॥ २ ॥ अब सुपो त्रिभुवन राया में करमोके वश श्राया हुं चतुर गति जटकाया मे