Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay
View full book text
________________
२०४
श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत.
अथ श्रीऊगमीयामंडन
आदिजिनस्तवनम्म्॥ श्रीराग ॥ आदिजिनमूरतिनयनानंद ॥ आंकणी ॥ क्यातारीफकरुंप्रजुतुमरी। दरिशणदिवेपरमाणंद ॥ आण ॥ १॥
औरसबीदेवनकीबबी धागे । तुम बबी प्रजुजीसुखकोकंद ॥ आ॥२॥ सचित् आनंदरुप तुमारो । योगीश्वर सबध्यानकरंद ॥ श्राप ॥३॥ पारंगतप्रजुतुमगुगणवृंदको। त्रिजुवनमेंकोणपारलहंद ॥आण ॥४॥ शांतरसमयमूरतिन्नेटी। नविजननवसंसारतुरंत ॥ ॥ ५ ॥ जगमीयामंमनःखखंडन । काटोकठीणकरमफंद ॥ आ ॥६॥ वीरविजयकहेआदिजिनेश्वर । आपो प्रजुजी परमाणंद ॥ आप ॥७॥ इतिसमाप्तम्म् ॥

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216